Posts

Showing posts from June, 2018

हमारे तो एक प्रभु हैं...

Image
  बड़े भाग मानुष तन पावा। मनुष्य शरीर बड़े भाग्य से मिलता है,भगवान की कृपा से मिलता है।इसलिए यह शरीर भगवान के लिए है।उनको प्राप्त करने के लिए है। वास्तव में एक मेरे प्रभु श्री सीताराम जी के अलावा और किसी की सत्ता है ही नहीं।आप विचार करके देखें,ये शरीर,ये संसार मिटनेवाला है,निरंतर मिट रहा है। जब हम मां के पेट से पैदा हुए थे,उस समय इस शरीर की क्या अवस्था थी और आज जब देखते हैं तो इसकी कैसी अवस्था है। ये संसार,ये शरीर पूर्व में जैसा था आज वैसा नहीं है और आज जैसा है,भविष्य में ऐसा नहीं रहेगा।यह निरंतर बदलने वाला है,बदल रहा है।लेकिन जो कभी नहीं बदलता सदा एकरूप बना रहता है वह केवल भगवद तत्व है,परमात्म तत्व है। हमारे प्रभु सीताराम जी निरंतर रहने वाले हैं और यह संसार  छूटनेवाला है। इसलिए हमें चाहिए कि हम दृढ़ता से यह मान लें कि प्रभु हमारे हैं और हम प्रभु के हैं।जैसे छोटा सा बालक कहता है कि मां मेरी है।कोई उससे पूछे कि बता मां तेरी क्यों है।तो इसका उत्तर उसके पास नहीं है।उसके मन में कोई शंका,कोई संदेह नहीं हैं। मां उसकी है, बस।फिर चाहे आप कुछ भी कहें, उसके लिए आपकी कोई बात महत्व ...

पाप का गुरु कौन ?

Image
किसी समय काशी शिक्षा की नगरी कही जाती थी । लम्बे समय से यह परम्परा रही है कि प्रत्येक बालक जो ब्राह्मण के घर में जन्म लेता था, उसे काशी जाकर वेदादि शास्त्रों का अध्ययन करना होता था । तभी वह कर्मकाण्ड आदि पुरोहिताई के कार्य करने के योग्य होता था । एक  बार की बात है, एक पंडितजी ने अपने बेटे  को भी शास्त्रों का अध्ययन  के लिए काशी भेजा । सभी शास्त्रों का सांगोपांग अध्ययन करने के बाद बालक अपने गाँव लौटा । अपने शिक्षित  बालक के आने की ख़ुशी में पंडितजी ने एक भव्य उत्सव का आयोजन करवाया, जिसमें ज्ञान चर्चा का विषय भी रखा गया । उसमें नये पंडितजी को शास्त्रोक्त तरीके से ग्रामवासियों की समस्याओं का समाधान करना था । सभी लोगों ने तरह - तरह के प्रश्न पूछे - लगभग सभी प्रश्नों के जवाब नये पंडितजी ने शास्त्रीय व्याख्याओं से दिए । गाँव वाले बहुत प्रभावित हो हुए । इतने में एक बूढा किसान सामने आया और उसने पूछा - " पाप का गुरु कौन ?" पंडितजी ने अपने  विवेक  पर जोर दिया परन्तु  इसका उत्तर  नहीं मिला । अंत में पंडित  जी को लगा कि अभी उनका ज्ञान अ...

संत कृपा

Image
एक जंगल में एक संत अपनी कुटिया में रहते थे। एक किरात (शिकारी), जब भी वहाँ से निकलता संत को प्रणाम ज़रूर करता था। एक दिन किरात संत से बोला की बाबा मैं तो मृग का शिकार करता हूँ, आप किसका शिकार करने जंगल में बैठे हैं.? संत बोले - श्री कृष्ण का, और फूट फूट कर रोने लगे। किरात बोला अरे, बाबा रोते क्यों हो ? मुझे बताओ वो दिखता कैसा है ? मैं पकड़ के लाऊंगा उसको। संत ने भगवान का वह मनोहारी स्वरुप वर्णन कर दिया....कि वो सांवला सलोना है, मोर पंख लगाता है, बांसुरी बजाता है। किरात बोला: बाबा जब तक आपका शिकार पकड़ नहीं लाता, पानी भी नही पियूँगा। फिर वो एक जगह जाल बिछा कर बैठ गया...3 दिन बीत गए प्रतीक्षा करते करते, दयालु ठाकुर को दया आ गयी, वो भला दूर कहाँ है, बांसुरी बजाते आ गए और खुद ही जाल में फंस गए। किरात तो उनकी भुवन मोहिनी छवि के जाल में खुद फंस गया और एक टक श्याम सुंदर को निहारते हुए अश्रु बहाने लगा, जब कुछ चेतना हुयी तो बाबा का स्मरण आया और जोर जोर से चिल्लाने लगा शिकार मिल गया, शिकार मिल गया, शिकार मिल गया, और ठाकुरजी की ओर देख कर बोला,अच्छा बच्चु .. 3 दिन भूखा प्यासा...