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Showing posts from November, 2018

हमारे तो एक प्रभु हैं...

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  बड़े भाग मानुष तन पावा। मनुष्य शरीर बड़े भाग्य से मिलता है,भगवान की कृपा से मिलता है।इसलिए यह शरीर भगवान के लिए है।उनको प्राप्त करने के लिए है। वास्तव में एक मेरे प्रभु श्री सीताराम जी के अलावा और किसी की सत्ता है ही नहीं।आप विचार करके देखें,ये शरीर,ये संसार मिटनेवाला है,निरंतर मिट रहा है। जब हम मां के पेट से पैदा हुए थे,उस समय इस शरीर की क्या अवस्था थी और आज जब देखते हैं तो इसकी कैसी अवस्था है। ये संसार,ये शरीर पूर्व में जैसा था आज वैसा नहीं है और आज जैसा है,भविष्य में ऐसा नहीं रहेगा।यह निरंतर बदलने वाला है,बदल रहा है।लेकिन जो कभी नहीं बदलता सदा एकरूप बना रहता है वह केवल भगवद तत्व है,परमात्म तत्व है। हमारे प्रभु सीताराम जी निरंतर रहने वाले हैं और यह संसार  छूटनेवाला है। इसलिए हमें चाहिए कि हम दृढ़ता से यह मान लें कि प्रभु हमारे हैं और हम प्रभु के हैं।जैसे छोटा सा बालक कहता है कि मां मेरी है।कोई उससे पूछे कि बता मां तेरी क्यों है।तो इसका उत्तर उसके पास नहीं है।उसके मन में कोई शंका,कोई संदेह नहीं हैं। मां उसकी है, बस।फिर चाहे आप कुछ भी कहें, उसके लिए आपकी कोई बात महत्व ...

कर्म ही जीवन है

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मनुष्य जैसा कर्म करता है , वैसा ही फल उसे प्राप्त होता है l बिना कर्म किये न ही संसार का सृजन हो सकता है और न ही लय l  हम कितनी भी महँगी गाड़ी क्यों न खरीद लें लेकिन जब तक उसमे पेट्रोल  नहीं डालेंगे  गाड़ी आगे नहीं बढे गी , बिना पेट्रोल के करोडो  रुपयों  की गाड़ी का भी कोई मोल  नहीं , क्यों की गाड़ी को चलाने का कार्य तो पेट्रोल का ही है l  ठीक इसी तरह ये जो शरीर रूपी गाड़ी है इसको चलाने का कार्य भी कर्म रूपी पेट्रोल का है , बिना कर्म के ये सुन्दर काया किसी काम की नहीं l  इसलिए यह संसार कर्म प्रधान है , कर्म ही इस शरीर के विकास एवं विनाश  का कारण है ,अच्छे कर्मो से यदि इस काया और समाज का विकास होता है , तो उसके विपरीत  बुरे कर्मो से इस काया और समाज का नाश भी होता है l  एक व्यक्ति किसी मार्ग से गुज़र रहा था , मार्ग में उसे आम का बागीचा दिखाई पड़ा l  अब ध्यान दीजिये , आम का  पेड़ देखा आंखो ने , लेकिन आँख वहाँ तक चल कर नहीं गए , चल कर पैर गए , पैर गए लेकिन तोडा  हाथो ने पैर ने नहीं , अच्छा तोडा हाथो ने लेकिन ...

प्याज़ और लहसुन निषिद्ध क्यों ?

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भोजन से हमारे शरीर एवं बुद्धि का विकास होता है , इसे लेकर एक प्रचलित  कहावत  भी है l  ' जैसा खाये अन्न , वैसा बने मन ' अर्थात हम जैसा भोजन करते हैं , हमारा मन उसी के अनुकूल  हो जाता जाता है l  हमारे द्वारा ग्रहण किये गए पदार्थों  से ही शरीर को  सात्विक ऊर्जा , उच्चतम बौद्धिक स्थिरता , शांति  की उपलब्धि  होती है l  हर कोई प्रसन्न रहना चाहता है , तनाव  मुक्त रहना चाहता है , इसके लिए यह आवश्यक है कि हम अपने भोजन पर विशेष ध्यान दें l स्वस्थ  जीवन के लिए यह आवश्यक है कि हम लहसुन और प्याज़ का त्याग करें , इस के सेवन से अनेकों विकारों की उत्पति हमारे शरीर एवं मन के क्षेत्र में होती है l  प्याज़ और लहसुन के कई शास्त्रीय  एवं मानस  शास्त्रीय प्रयोग हो चुके  हैं l  प्याज़ के छिलके निकालते समय अंदर  की गंध मन को विचलित कर देती है l  आंखों से पानी आना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है l  प्याज़ के सेवन का असर रक्त में रहने तक मन में काम वासनात्मक विकार मंडराते रहते  हैं l...