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Showing posts from March, 2019

हमारे तो एक प्रभु हैं...

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  बड़े भाग मानुष तन पावा। मनुष्य शरीर बड़े भाग्य से मिलता है,भगवान की कृपा से मिलता है।इसलिए यह शरीर भगवान के लिए है।उनको प्राप्त करने के लिए है। वास्तव में एक मेरे प्रभु श्री सीताराम जी के अलावा और किसी की सत्ता है ही नहीं।आप विचार करके देखें,ये शरीर,ये संसार मिटनेवाला है,निरंतर मिट रहा है। जब हम मां के पेट से पैदा हुए थे,उस समय इस शरीर की क्या अवस्था थी और आज जब देखते हैं तो इसकी कैसी अवस्था है। ये संसार,ये शरीर पूर्व में जैसा था आज वैसा नहीं है और आज जैसा है,भविष्य में ऐसा नहीं रहेगा।यह निरंतर बदलने वाला है,बदल रहा है।लेकिन जो कभी नहीं बदलता सदा एकरूप बना रहता है वह केवल भगवद तत्व है,परमात्म तत्व है। हमारे प्रभु सीताराम जी निरंतर रहने वाले हैं और यह संसार  छूटनेवाला है। इसलिए हमें चाहिए कि हम दृढ़ता से यह मान लें कि प्रभु हमारे हैं और हम प्रभु के हैं।जैसे छोटा सा बालक कहता है कि मां मेरी है।कोई उससे पूछे कि बता मां तेरी क्यों है।तो इसका उत्तर उसके पास नहीं है।उसके मन में कोई शंका,कोई संदेह नहीं हैं। मां उसकी है, बस।फिर चाहे आप कुछ भी कहें, उसके लिए आपकी कोई बात महत्व ...

हमारी दिनचर्या कैसी हो ?

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हम सब हमेशा से यह सुनते आए हैं कि शुरुवात अच्छी होनी चाहिए , कारण यदि हमारी शुरुवात अच्छी होगी तो कदाचित आगे का मार्ग भी सुन्दर एवं आनंद दायक  होगा , क्यों की आगे मात्र चलना है , विचारों की जो शुरुआत  है उसे तो शुरुवात में ही शुरू करना है , यदि अच्छे विचारों की उत्पति से आप का दिन प्रारम्भ हो, तो आप का सारा कार्य बढ़िया ही होगा , मन प्रसन्न और शांत रहेगा ,किन्तु यदि आप की सुबह  ही दूषित विचारों एवं क्रियाओं  से प्रारम्भ हो , तो आप का मन पुरे दिन अशांत ही रहेगा और आप के सारे कार्यों में गड़बड़ी  ही होगी l  इसलिए कहा जाता है कि शुरुवात अच्छी होनी चाहिए l  आज का हमारा विषय है , दिनचर्या , आखिर कैसी होनी चाहिए हमारी दिनचर्या , हमें अपने दिन की शुरुवात कैसे करनी चाहिए ? मित्रों , यहाँ पर हम भगवान् राम के जीवन चरित्र से कुछ प्रेरणा लेंगे , आईये देखते हैं कि भगवान् राम अपने दिन का प्रारम्भ कैसे करते हैं -     प्रात काल उठि कै रघुनाथा  l  मातु  पिता गुरु नावहिं माथा l   (मानस ) भगवान...
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सज्जन पुरुष

संत का चरित्र ग्रहण करने योग्य  है , यहाँ संत अर्थात सज्जन पुरुष , वह भी संत ही है l  संत को कपास  कहा गया है l  जिस तरह कपास का रंग , स्वरुप उज्वल  होता है ठीक उसी प्रकार संत अर्थात सज्जन व्यक्ति का चरित्र भी उज्वल , निर्मल होता है l            साधु चरित शुभ चरित कपासू  (  मानस ) सज्जन पुरुष इसलिए भी महान और वंदनीय  है , क्यों की जिस तरह कपास , सुई से किये गए छिद्रों  को भर देता है और स्वयं वस्त्र  रूप हो कर दूसरों के गोपनीय  अंगों  को ढंकता  है उसी तरह सज्जन भी दूसरों के दोषों को ढँक  कर उनके गुणों को उजागर करते है , वे स्वयं दुःख सहते हैं ताकि दूसरों को सुख मिल सके l  इसलिए वे वंदनीय हैं और उनका यश  सर्वत्र है l         जो सही दुःख परछिद्र  दुरावा  l  बंदनीय जेहिं जग जस पावा l   (  मानस )

watsapp के दस अनमोल वचन

      अपनों  की परिभाषा    प्रेम सकल हो, भाव अटल हो..      मन को मन की आशा हो..         बिन बोले जो व्यथा जान ले वो अपनों की परिभाषा हो..                  सफलता का मन्त्र      तालाब एक ही है,    उसी तालाब मे हंस मोती चुनता है            और बगुला मछली.!       सोच सोच का फर्क होता है.! आपकी सोच ही आपको बड़ा बनाती है.!*       यदि हम गुलाब की तरह खिलना चाहते है ,              तो काँटों के साथ    तालमेल की कला सीखनी होगी                    जीवन का सत्य      जिन्दगी की तपिश को सहन कर...