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Showing posts from May, 2019

हमारे तो एक प्रभु हैं...

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  बड़े भाग मानुष तन पावा। मनुष्य शरीर बड़े भाग्य से मिलता है,भगवान की कृपा से मिलता है।इसलिए यह शरीर भगवान के लिए है।उनको प्राप्त करने के लिए है। वास्तव में एक मेरे प्रभु श्री सीताराम जी के अलावा और किसी की सत्ता है ही नहीं।आप विचार करके देखें,ये शरीर,ये संसार मिटनेवाला है,निरंतर मिट रहा है। जब हम मां के पेट से पैदा हुए थे,उस समय इस शरीर की क्या अवस्था थी और आज जब देखते हैं तो इसकी कैसी अवस्था है। ये संसार,ये शरीर पूर्व में जैसा था आज वैसा नहीं है और आज जैसा है,भविष्य में ऐसा नहीं रहेगा।यह निरंतर बदलने वाला है,बदल रहा है।लेकिन जो कभी नहीं बदलता सदा एकरूप बना रहता है वह केवल भगवद तत्व है,परमात्म तत्व है। हमारे प्रभु सीताराम जी निरंतर रहने वाले हैं और यह संसार  छूटनेवाला है। इसलिए हमें चाहिए कि हम दृढ़ता से यह मान लें कि प्रभु हमारे हैं और हम प्रभु के हैं।जैसे छोटा सा बालक कहता है कि मां मेरी है।कोई उससे पूछे कि बता मां तेरी क्यों है।तो इसका उत्तर उसके पास नहीं है।उसके मन में कोई शंका,कोई संदेह नहीं हैं। मां उसकी है, बस।फिर चाहे आप कुछ भी कहें, उसके लिए आपकी कोई बात महत्व ...

सदगृहस्थ जीवन के आठ 'लक्षण'

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गृहस्थ जीवन को एक तपोवन कहा गया है , क्यों की यहाँ व्यक्ति मात्र अपने नहीं अपितु संसार के उत्थान का भी मार्ग प्रशस्त  करता है ,उत्तम गृहस्थ जीवन समाज के लिए एक ऊँचा उदाहरण पेश  करता है ,जो समाज में उत्तम मूल्यों  का विकास करता है , समाज को उत्कर्ष की ओर ले जाता है l गृहस्थ  जीवन का महत्व  बहुत अधिक है ,शास्त्रों में  गृहस्थ आश्रम को श्रेष्ठ बताया गया है कारण राष्ट्र का कल्याण , जीव का कल्याण और सम्पूर्ण पृथ्वी का कल्याण उत्तम गृहस्थ धर्म के पालन से ही हो सकता है , किन्तु अगर हम आज के परिदृश्य को देखें तो हमे मालूम होगा की जीवन से मूल्य समाप्त  होते जा रहें हैं , हर तरफ नफरत है , हर तन - हर मन दुखी है , राष्ट्र के युवा अनेक बुरी आदतों के शिकार होते जा रहें है , आज पति -  पत्नी का सम्बन्ध धर्म के आधार पर नहीं अपितु धन के आधार पर है   जिसके कारण गृहस्थ जीवन 'तपोवन' से अब मात्र 'भोगवन' हो कर रह गया है , इसलिए अब गृहस्थ जीवन समाज के उत्कर्ष का नहीं अपितु उसके पतन का कारन बनता  जा रहा है l  आज आवश्यक है कि हम सद्गृ...

प्रेम

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जीवन का परम कल्याण हो , जीवन शांति रस से परिपूर्ण  हो , जीवन में प्रेम और आनंद हो , यही हम सब चाहते हैं और इसी के  लिए हम सब प्रयासरत हैं  l मानव जीवन में प्रेम की प्रधानता  देखने को मिलती है , हर कोई प्रेम की ही चर्चा करता है , किन्तु फिर भी अशांत है , जो भी प्रेम उसके पास है वह उसके जीवन को शांन्ति  और आनंद प्रदान नहीं कर पा रहा है , उलट उसे अशांति के गर्भ में धकेल रहा है , ऐसा क्यों हो रहा है ? यह प्रश्न यदि हम खुद से पूंछे तो शायद हमारा मन हमे बतादे  की जिसे हम प्रेम समझ रहें हैं , वह वास्तव में बस एक भाव है , जिसका जन्म शरीर के अनेक विकारों के कारण हुआ है , क्यों की यदि वास्तव में वह प्रेम होता ,तब हमारा मन अशांत न होता , आनंद के आभाव में मन खिन्न न  होता l  यदि किसी व्यक्ति को घर के बाहर और भीतर दोनों ओर प्रकाश की चाह हो , तो वह क्या करेगा ? सीधा सा और सरल सा उपाय  है , वह घर की देहरी पर दीपक रख देगा , अब आप के मन में यह प्रश्न उठेगा  की इसका लाभ  क्या है ? इसका  भी बड़ा ही सरल सा जवाब है ,...