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Showing posts from March, 2020

हमारे तो एक प्रभु हैं...

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  बड़े भाग मानुष तन पावा। मनुष्य शरीर बड़े भाग्य से मिलता है,भगवान की कृपा से मिलता है।इसलिए यह शरीर भगवान के लिए है।उनको प्राप्त करने के लिए है। वास्तव में एक मेरे प्रभु श्री सीताराम जी के अलावा और किसी की सत्ता है ही नहीं।आप विचार करके देखें,ये शरीर,ये संसार मिटनेवाला है,निरंतर मिट रहा है। जब हम मां के पेट से पैदा हुए थे,उस समय इस शरीर की क्या अवस्था थी और आज जब देखते हैं तो इसकी कैसी अवस्था है। ये संसार,ये शरीर पूर्व में जैसा था आज वैसा नहीं है और आज जैसा है,भविष्य में ऐसा नहीं रहेगा।यह निरंतर बदलने वाला है,बदल रहा है।लेकिन जो कभी नहीं बदलता सदा एकरूप बना रहता है वह केवल भगवद तत्व है,परमात्म तत्व है। हमारे प्रभु सीताराम जी निरंतर रहने वाले हैं और यह संसार  छूटनेवाला है। इसलिए हमें चाहिए कि हम दृढ़ता से यह मान लें कि प्रभु हमारे हैं और हम प्रभु के हैं।जैसे छोटा सा बालक कहता है कि मां मेरी है।कोई उससे पूछे कि बता मां तेरी क्यों है।तो इसका उत्तर उसके पास नहीं है।उसके मन में कोई शंका,कोई संदेह नहीं हैं। मां उसकी है, बस।फिर चाहे आप कुछ भी कहें, उसके लिए आपकी कोई बात महत्व ...

कोरोना से लड़ो मत

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प्रिय पाठकों,आज समूचा विश्व महामारी के प्रकोप से जूझ रहा है,वर्तमान की परिस्थिति पूर्णरूपेण मानव जाती के प्रतिकूल है,ऐसे प्रतिकूल समय में,यह आवश्यक है कि हम अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए स्वयं को और इस राष्ट्र को सुरक्षित रखें।जब समस्या बहुत बड़ी हो, तो उस समय हमें छोटा हो जाना चाहिए ,यही बुद्धिमानी है। हनुमान जी जब समुद्र मार्ग से लंका की ओर जा रहे थे ,उस समय मार्ग में सुरसा नाम की एक राक्षसी ने उन्हें खाने की इच्छा प्रकट कि। हनुमान जी को खाने के लिए वह ज्यों-ज्यों अपने मुख का विस्तार करती त्यों-त्यों हनुमान जी अपने शरीर  का दुगुना विस्तार कर लेते,कुछ समय पश्चात हनुमान जी को अनुभव हुआ कि 'यह सुरसा तो अपने मुख का विस्तार बड़ी तेजी से करती ही जा रही है ,यदि मैं,इसके सामने शक्ति प्रयोग करूँगा तो मेरे समय की बर्बादी होगी और प्रभु के कार्य में देरी।' इसलिए जब सुरसा ने 400 योजन का मुख फैलाया तब हनुमान जी छोटे हो गए और उसके मुख में जा कर पुनः वापस आगए,इस तरह उन्होंने बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए सुरसा को पराजित कर दिया,उससे मुक्ति पा ली। ...

मनुष्य की उत्पत्ति और वर्णाश्रम धर्म

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शास्त्रों के स्वाध्याय से मालूम होता है कि मनुसे ही मनुष्य की उत्पत्ति हुई है और इस उत्पत्ति का मूल स्थान भारतवर्ष ही है। मनुसे ही मानव, मनुष्य आदि शब्द निकले हैं। भारत की इस पावन धरा से ही सारी पृथ्वी पर मानव सृष्टि का विस्तार हुआ है। मानवता और मानव का उद्गम स्थान भारतवर्ष ही है। अतः श्री मनुजी का आदेश है कि सारी पृथ्वी के लोग यहीं से शिक्षा ग्रहण करें। 'इस देश (भारतवर्ष)- में उत्पन्न हुए ब्राह्मण के समीप पृथ्वी के समस्त मानव अपने-अपने चरित्र की शिक्षा ग्रहण करें।' (मनु-२/२०) जितने भी स्मृतियों के रचयिता महर्षि हुए हैं।उनमें महाराज मनु प्रधान हैं। इसलिए हम लोगों को मनुष्यता के पूर्ण आदर्श बनने के लिए मनुपरोक्त धर्मों के अनुसार ही अपना जीवन बनाना चाहिए। पृथ्वी के संचालन, संरक्षण और कल्याण के लिए मनुजी ने वेदों को आधार मानकर चार वर्णों और चार आश्रमों की व्यवस्था की थी। आज जो समाज का पतन हम देख रहे हैं, वह वर्णाश्रम व्यवस्था के बिगड़ जाने के कारण ही हुआ है। अतः उसकी रक्षा के लिए हमें मानव धर्मरूप भारतीय संस्कृति को अपनाना चाहिए। खान-पान,  भाषा-वेष और चरित्...

सत्य बोलने पर सेवक बना राजा

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एक बहुत बड़े राज्य के राजा ऋषभदेव का एक सेवक था। जो उनकी बहुत सेवा करता था।  उसका नाम भोलाराम था।भोलाराम की सत्यनिष्ठा अद्भुत थी। वह सत्य को परमेश्वर मानकर आदर करता था। भोलाराम ने प्रण कर लिया था कि प्राण भले चले जाएं परंतु सत्य बोलना कभी न छोडूंगा। धीरे-धीरे उसके सत्य भाषण का प्रभाव इतना व्यापक हो गया कि लोग उसकी वाणी का लोहा मानने लगे। सत्य भाषण की अद्भुत साधना भोलाराम के जीवन में चरितार्थ होती दिखाई पड़ती थी। राजा अपने उस सेवक को प्राणों से बढ़कर मानते थे और उसकी प्रशंसा किए बिना उनसे रहा नहीं जाता था ।एक बार अंग देश के राजा से उन्होंने अपने सेवक की सत्यनिष्ठा की प्रशंसा कर दी। अंगदेश के राजा को विश्वाश न हुआ कि कोई व्यक्ति इतना सच्चा हो सकता है। उन्होंने कहा-'मैं उसे झूठ बोलने के लिए विवश कर दूंगा। राजा ऋषभदेव को अपने सेवक पर पूरा विश्वास था। उन्होंने दृढ़ता के साथ कहा-' मेरे सेवक को कभी सत्यनिष्ठा से डिगाया नहीं जा सकता। अंग देश के राजा ने कहा- 'उसे मैं सत्यनिष्ठा से डिगा ही दूंगा। यदि ऐसा न कर सका तो आधा राज्य मैं आपको दे दूंगा। पर याद रखें यदि उसे सत्य से डि...