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Showing posts from April, 2020

हमारे तो एक प्रभु हैं...

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  बड़े भाग मानुष तन पावा। मनुष्य शरीर बड़े भाग्य से मिलता है,भगवान की कृपा से मिलता है।इसलिए यह शरीर भगवान के लिए है।उनको प्राप्त करने के लिए है। वास्तव में एक मेरे प्रभु श्री सीताराम जी के अलावा और किसी की सत्ता है ही नहीं।आप विचार करके देखें,ये शरीर,ये संसार मिटनेवाला है,निरंतर मिट रहा है। जब हम मां के पेट से पैदा हुए थे,उस समय इस शरीर की क्या अवस्था थी और आज जब देखते हैं तो इसकी कैसी अवस्था है। ये संसार,ये शरीर पूर्व में जैसा था आज वैसा नहीं है और आज जैसा है,भविष्य में ऐसा नहीं रहेगा।यह निरंतर बदलने वाला है,बदल रहा है।लेकिन जो कभी नहीं बदलता सदा एकरूप बना रहता है वह केवल भगवद तत्व है,परमात्म तत्व है। हमारे प्रभु सीताराम जी निरंतर रहने वाले हैं और यह संसार  छूटनेवाला है। इसलिए हमें चाहिए कि हम दृढ़ता से यह मान लें कि प्रभु हमारे हैं और हम प्रभु के हैं।जैसे छोटा सा बालक कहता है कि मां मेरी है।कोई उससे पूछे कि बता मां तेरी क्यों है।तो इसका उत्तर उसके पास नहीं है।उसके मन में कोई शंका,कोई संदेह नहीं हैं। मां उसकी है, बस।फिर चाहे आप कुछ भी कहें, उसके लिए आपकी कोई बात महत्व ...

यम और नियम क्या है?

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ध्यान तो अनेक लोग करते हैं किंतु उसमें सफलता किंचित लोग ही प्राप्त कर पाते हैं।इसका कारण बहुत ही सरल है,जब हम ध्यान की बात करते हैं,तो उसमें जो सब से पहली सीढ़ी है, वो है 'यम' और 'नियम' ।बिना यम और नियम का पालन किए साधक समाधि की अवस्था तक नहीं पहुँच सकता।जब तक साधक में झूठ, कपट,चोरी,व्यभिचार आदि दुराचारी वृत्तियों का बोल-बाला होगा,तब तक उसका चित्त एकाग्र होना कठिन है और एकाग्र हुए बिना ध्यान और समाधि का सिद्ध होना कल्पना मात्र है।योग मार्ग के साधकों को यों तो योग के आठों ही अंगों का पालन करना चाहिए किन्तु यम और नियम का पालन तो विशेष रूप से होना ही चाहिए।घर बनाने से पूर्व जैसे नींव की मजबूती सब से पहले सुनिश्चित की जाती है,ऐसे ही ध्यान और समाधि की सिद्धि के लिए यम और नियम का होना अति आवश्यक है। अब प्रश्न यह उठता है कि यम और नियम है क्या? प्रिय पाठकों यम,नियम,आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि― ये योग के आठ अंग हैं।इन आठ अंगोंकी दो भूमिकाएं हैं।―(१)अंतरंग , (२) बहिरंग । ऊपर बताए गए आठ अंगों में से प्रथम पांच बहिरंग साधन कहे जाते हैं ,क्योंक...