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Showing posts from May, 2020

हमारे तो एक प्रभु हैं...

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  बड़े भाग मानुष तन पावा। मनुष्य शरीर बड़े भाग्य से मिलता है,भगवान की कृपा से मिलता है।इसलिए यह शरीर भगवान के लिए है।उनको प्राप्त करने के लिए है। वास्तव में एक मेरे प्रभु श्री सीताराम जी के अलावा और किसी की सत्ता है ही नहीं।आप विचार करके देखें,ये शरीर,ये संसार मिटनेवाला है,निरंतर मिट रहा है। जब हम मां के पेट से पैदा हुए थे,उस समय इस शरीर की क्या अवस्था थी और आज जब देखते हैं तो इसकी कैसी अवस्था है। ये संसार,ये शरीर पूर्व में जैसा था आज वैसा नहीं है और आज जैसा है,भविष्य में ऐसा नहीं रहेगा।यह निरंतर बदलने वाला है,बदल रहा है।लेकिन जो कभी नहीं बदलता सदा एकरूप बना रहता है वह केवल भगवद तत्व है,परमात्म तत्व है। हमारे प्रभु सीताराम जी निरंतर रहने वाले हैं और यह संसार  छूटनेवाला है। इसलिए हमें चाहिए कि हम दृढ़ता से यह मान लें कि प्रभु हमारे हैं और हम प्रभु के हैं।जैसे छोटा सा बालक कहता है कि मां मेरी है।कोई उससे पूछे कि बता मां तेरी क्यों है।तो इसका उत्तर उसके पास नहीं है।उसके मन में कोई शंका,कोई संदेह नहीं हैं। मां उसकी है, बस।फिर चाहे आप कुछ भी कहें, उसके लिए आपकी कोई बात महत्व ...

प्रकृति के लिए क्रांति का सूत्रपात

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भारत की वर्तमान परिस्थिति ने सभी को ये बता दिया है कि प्रकृति का दमन करके यदि आप सोचते हैं कि विकास की क्रिया को क्रियान्वित कर लेंगे तो आप की यह सोच सर्वथा अनुचित है।प्रकृति की उदारता को उसकी दुर्बलता समझने वाले लोगों ने जो विकास के नाम पर प्रकृति के दोहन का प्रकल्प चला रखा है,ये महामारी उसी का नतीजा है।प्रकृति ने आदि-अनादि काल से ही मनुष्य को केवल और केवल दिया है बदले में उससे कभी कुछ लिया नहीं किन्तु मनुष्यों ने उसकी इस उदार भावना को उसके ही दोहन के लिए प्रयोग किया।आज ये महामारी जो समग्र विश्व को कष्टप्रद प्रतीत हो रही है ये और कुछ नहीं बल्कि प्रकृति की वही पीड़ा है जो उसने सैकड़ों वर्षों से हम मनुष्यों की मूर्खता के कारण भोगा है।एक लोकोक्ति आप ने सुनी होगी -' जाके पग नहीं फटी बिवाई ,सो का जाने पीर पराई'।इस लोकोक्ति का अर्थ बड़ा ही सरल है किंतु कहना पड़ेगा कि आज के संदर्भ में ये सर्वथा सत्य है।वर्षों से यमुना ,गंगा ,नर्मदा ,गोदावरी आदि जीवन दायनी नदियाँ बिलखती हुई चीख-चीख कर बस यही कह रही थीं कि बस ,अब और दोहन न करो हमारा ,हमारी पवित्रता को अब और कलंकित न करो किन्तु क...

भारतीय नारी माता दमयन्ती की कथा

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भीष्म नाम के एक राजा विदर्भ देशमें राज्य करते थे।उनकी एक सुलक्षणा कन्या थी जिसका नाम दमयन्ती था।माता दमयन्ती में श्रेष्ठ गुणों का सन्निवेश था,वे अतिशय रूपवती थीं।विषध देश के राजा वीरसेन के पुत्र नल उन दिनों विषध देश पर राज्य करते थे।वे बड़े ही विद्वान,गुणवान ,सत्यवादी तथा ब्राह्मण भक्त थे।जब भी कोई निषध देश से विदर्भ देश को आता तो वह राजा नल की बड़ी प्रशंसा करता।देश के लोगों द्वारा राजा नल के गुणों की प्रशंसा माता दमयन्ती के कानों तक भी पहुंचती थी।ठीक इसी तरह विदर्भ देश से आनेवाले लोग राजकुमारी के रूप और गुणों की चर्चा महाराज नल से करते।महाराज नल के गुणों की कथा ने माता दमयन्ती के ह्रदय में उनकी छवि का निर्माण कर दिया, इसके विपरीत महाराज का भी कुछ यही हाल था। धीरे-धीरे वह समय आया जब माता दमयन्ती का स्वयंवर सुनिश्चित किया गया,स्वयम्वर में एक से एक महारथी राजा आए थे जिन्होंने खूब पराक्रम दिखाया किन्तु अंत में माता दमयन्ती ने महाराज नल को ही वरा ।माता दमयन्ती को अपने गृहस्थ जीवन के लिए देवताओं का अशीर्वाद प्राप्त हुआ और इस तरह वे निषध देश की महारानी बनीं, महाराज नल के साथ उन...

भारतीय स्त्री माता अनसूया

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भारतवर्ष की सती - साध्वी नारियों में माता अनसूया का स्थान बहुत ऊँचा है।इनका जन्म एक श्रेष्ठ कुल में हुआ था।पितामहः ब्रह्मा के मानस पुत्र महर्षि अत्रि को माता ने पति रूप में प्राप्त किया था।अपने प्रेम तथा सेवा भाव से इन्होंने महर्षि अत्रि के हृदय को जीत लिया था। भगवान बड़े कौतुकी हैं,जब उन्हें अपने भक्तों का यश बढ़ाना होता है तब वे नाना प्रकार की लीलाएं करते हैं।एक बार की बात है,माता लक्ष्मी ,सरस्वती और माता सती को अपने पातिव्रत्य का बड़ा अभिमान हो गया।भगवान अपने भक्तों के अंतःकरण में अंहकार को नहीं देख सकते अतः देवियों के अहंकार को नष्ट करने के लिए भगवान ने नारद जी के मनमें प्रेरणा की।फलतः श्री नारद जी माता लक्ष्मी के पास पहुँचे।नारद जी को देख कर माता को बहुत प्रसन्नता हुई,उनका मुख-कमल खिल उठा।माता ने कहा- 'आइए नारदजी, आप बहुत समय बाद वैकुंठ को पधारे हैं।कहिए, क्या हाल है? नारदजी बोले - क्या बताऊँ माता ,कुछ बताते नहीं बनता।अबकी बार भ्रमण करते -करते मैं चित्रकूट की ओर महर्षि अत्रि के आश्रम पर जा पहुँचा।वहाँ पर मैंने महर्षि की पत्नी माता अनसूया के दर्शन किए, सत्य क...