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Showing posts from December, 2018

हमारे तो एक प्रभु हैं...

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  बड़े भाग मानुष तन पावा। मनुष्य शरीर बड़े भाग्य से मिलता है,भगवान की कृपा से मिलता है।इसलिए यह शरीर भगवान के लिए है।उनको प्राप्त करने के लिए है। वास्तव में एक मेरे प्रभु श्री सीताराम जी के अलावा और किसी की सत्ता है ही नहीं।आप विचार करके देखें,ये शरीर,ये संसार मिटनेवाला है,निरंतर मिट रहा है। जब हम मां के पेट से पैदा हुए थे,उस समय इस शरीर की क्या अवस्था थी और आज जब देखते हैं तो इसकी कैसी अवस्था है। ये संसार,ये शरीर पूर्व में जैसा था आज वैसा नहीं है और आज जैसा है,भविष्य में ऐसा नहीं रहेगा।यह निरंतर बदलने वाला है,बदल रहा है।लेकिन जो कभी नहीं बदलता सदा एकरूप बना रहता है वह केवल भगवद तत्व है,परमात्म तत्व है। हमारे प्रभु सीताराम जी निरंतर रहने वाले हैं और यह संसार  छूटनेवाला है। इसलिए हमें चाहिए कि हम दृढ़ता से यह मान लें कि प्रभु हमारे हैं और हम प्रभु के हैं।जैसे छोटा सा बालक कहता है कि मां मेरी है।कोई उससे पूछे कि बता मां तेरी क्यों है।तो इसका उत्तर उसके पास नहीं है।उसके मन में कोई शंका,कोई संदेह नहीं हैं। मां उसकी है, बस।फिर चाहे आप कुछ भी कहें, उसके लिए आपकी कोई बात महत्व ...

श्री सीताजी और रामजी अलग नही हैं

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श्री सीताराम जी के नाम की महिमा अपार है , अनेक जीव प्रभु श्री राघवेंद्र सरकार का नाम ले कर , इस भवसागर से पार हो गये l बहुत  से साधक ऐसे हैं , जिनके मन में यह प्रश्न उठता है कि वे 'सीताराम ' जपें  या ' राम राम '  l आइये इस परम गोपनीय एवं प्रेम मय विषय पर प्रकाश डालें l  गिरा अरथ जल बीची सम कहिअत भिन्न न भिन्न  l  बंदउँ  सीता राम  पद  जिन्हहि  परम प्रिय खिन्न   l l                                                                    (मानस , बालकाण्ड . दो -18 ) श्री सीताराम जी की अभिन्नता को समझने के लिए , यहाँ हम दो दृष्टांतों पर प्रकाश डालेंगे , रामजी और श्री सीताजी एक ही हैं ...

आनंद

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जीवन में हम जो भी करते हैं , वह सब आनंद के लिए ही करते हैं l दूसरों से मित्रता करते हैं , आनंद के लिए , विवाह करते हैं , आनंद के लिए , बच्चों को जन्म देते हैं , आनंद के लिए , गांव में अपने माता पिता को छोड महानगरों में भी हम आनंद को ही खोजने के लिए आते हैं , किन्तु इतना  सब करने के पश्चात भी हम जीवों को आनंद मिलता नहीं , मात्र दुःख ही मिलता है l हमारे बनाये हुए प्रत्येक सम्बन्ध से हमें सुख तो मिलता है , किन्तु वह सुख क्षणिक ही होता है , वही सुख आगे चल कर लम्बे समय तक हमें दुःख देता है l कोई व्यक्ति साइकिल खरीदता  है , उससे चलता है , उसके मन में बड़ा ही आनंद होता है कि कल तक मैं पैदल ही चलता था किन्तु आज मेरे पास साइकिल है , लेकिन जैसे ही वह किसी दूसरे व्यक्ति को मोटर साइकिल पर देखता है , उसका आनंद चला जाता है , अब उसके मन में साइकिल के लिए नहीं अपितु मोटर साइकिल के लिए प्रेम जग जाता है , अब उसकी इच्छा मोटर साइकिल पर चढ़ने की होती है , फिर वह चारपहिया (कार) देखता है , फिर उसके मन में , उसकी इच्छा जागती है , बार -  बार वह इस तृष्णा में आनंद को ही खोजत...

यह जगत मिथ्या है

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मनुष्य के अनंत जन्मो के कुसंस्कार उसे सत्य की ओर ज्ञान की ओर बढ़ने  नहीं देते l  सत्य क्या है , परमात्मा ही सत्य है , जो सदा था , है ओर रहेगा l  संसार स्थायी  नहीं है , हर क्षण यहाँ परिवर्तन देखने को मिलता है , इस परिवर्तनशील संसार को हमने अपने हृदय से लगा रखा है , इसके प्रति मोह बना कर रखा है ओर यही हमारे दुःख का कारण है l  हमारे नेत्रों के सम्मुख रोज़ाना अनेको व्यक्ति अपने प्राण को  त्याग देते हैं , फिर भी हम सोचते हैं कि हमें क्या होना है , हमे कुछ न होगा , अरे अभी हमारी उम्र ही क्या है l  देख कर भी हम सत्य को अनदेखा करते हैं और अपने मोह के कारण असंख्य दुःख को भोगते  हैं l अनंत काल से हम अपने मोह के कारण , अज्ञानता के कारण इस काल चक्र  में फसें  हुए हैं l  किसी जन्म में कुत्ता तो किसी जन्म में बिल्ली , अनेक योनियों को भोग कर हमें आज यह मनुष्य का तन  प्राप्त हुआ है , अरे जिस मनुष्य शरीर के लिए देवता भी याचना करते हैं , वह शरीर हमें प्राप्त हुआ है l देवताओं  का शरीर तो कितना बढ़िया है , हमारे देह ...