श्री सीताराम जी के नाम की महिमा अपार है , अनेक जीव प्रभु श्री राघवेंद्र सरकार का नाम ले कर , इस भवसागर से पार हो गये l बहुत से साधक ऐसे हैं , जिनके मन में यह प्रश्न उठता है कि वे 'सीताराम ' जपें या ' राम राम ' l आइये इस परम गोपनीय एवं प्रेम मय विषय पर प्रकाश डालें l
गिरा अरथ जल बीची सम कहिअत भिन्न न भिन्न l
बंदउँ सीता राम पद जिन्हहि परम प्रिय खिन्न l l
(मानस , बालकाण्ड . दो -18 )
श्री सीताराम जी की अभिन्नता को समझने के लिए , यहाँ हम दो दृष्टांतों पर प्रकाश डालेंगे , रामजी और श्री सीताजी एक ही हैं , अलग - अलग नहीं l कैसे ?
उत्तर - जैसे , गिरा -अरथ और जल - बीची l यहाँ ' गिरा ' का अर्थ वाणी है , मित्रों यदि हम वाणी से कुछ भी कहेंगे तो उसका कुछ न कुछ अर्थ होगा ही , और यदि किसी को कुछ अर्थ समझाना है , तो वाणी से ही कहा जायेगा , बिना वाणी के हम उसे अर्थ नहीं समझा पाएंगे l
दूसरा दृष्टांत है , जल - बीची , यहाँ ' बीची ' का अर्थ हुआ जल की तरंगे , मित्रों जहाँ जल होगा वहां उसकी तरंगे भी होंगी , तरंग और जल कहने में दो हैं , पर जल से तरंग और तरंग से जल भिन्न नहीं है , एक ही है l
यहाँ गिरा और बीची - ये दोनोंों ही स्त्रीलिंग पद हैं , अरथ और जल ये दोनों ही पुलिंग पद हैं l यहाँ पर यह दृष्टांत श्री सीताजी और रामजी की , परस्पर अभिन्नता बताने के लिए दिए गए हैं l यहाँ पर इनका उलट - पुलट कर के प्रयोग किया गया है , पहले 'गिरा ' स्त्रीलिंग पद कह कर , फिर 'अरथ' पुलिंग पद कहा , जिसका अर्थ सीताराम हुआ , फिर 'जल ' पुलिंग पद कह कर , 'बीची ' स्त्रीलिंग पद कहा जिसका अर्थ हुआ , रामसीता l इस तरह यह सिद्ध होता है कि श्री सीताजी और रामजी में कोई भेद नहीं , वे एक ही हैं l इसलिए चाहे सीताराम कहो , या रामसीता कहो एक ही है l भरत जी कहते हैं ---
भरत तीसरे पहर कहँ कीन्ह प्रबेसु प्रयाग l
कहत राम सिय राम सिय उमगि उमगि अनुराग l l
(मानस ,अयोध्याकाण्ड .दो -203)
भरत जी , प्रेम में उमंग से भर कर , राम सिय राम सिय करते चले जा रहे हैं l वे जहाँ भी अपनी दृष्टी डालते हैं , वहां उन्हें श्री सीताराम जी के दर्शन ही होते हैं l वे कहते हैं .....
सीया राममय सब जग जानी l करहुँ प्रनाम जोरि जुग पानी l
(मानस ,बालकाण्ड .7/1)
भिन्नता तब तक है , जब तक की प्रेम का आभाव है , जहाँ प्रेम है , वहां एकता का आभास होता है ,भरत जी का हृदय श्री सीताराम जी के प्रेम से प्रफुल्लित हो रहा है , जिसके कारण उन्हें पूरा संसार ही श्री सीताराम मय दिखाई पड रहा है l
प्रेम के कारण द्वैत का भाव मिट जाता है l श्री सीताजी और रामजी एक ही हैं , उनमे कोई अंतर् नहीं , इसलिए चाहे सीताराम जपो या रामसीता जपो एक ही है l माँ के बिना बच्चे का पोषण कौन करेगा और पिता के बिना रक्षण कौन करेगा , माता और पिता दोनों ही बालक के आधार हैं l
--------------------जय श्री सीताराम ----------------------
plzz comment
सुंदर जानकारी
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