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Showing posts from July, 2019

हमारे तो एक प्रभु हैं...

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  बड़े भाग मानुष तन पावा। मनुष्य शरीर बड़े भाग्य से मिलता है,भगवान की कृपा से मिलता है।इसलिए यह शरीर भगवान के लिए है।उनको प्राप्त करने के लिए है। वास्तव में एक मेरे प्रभु श्री सीताराम जी के अलावा और किसी की सत्ता है ही नहीं।आप विचार करके देखें,ये शरीर,ये संसार मिटनेवाला है,निरंतर मिट रहा है। जब हम मां के पेट से पैदा हुए थे,उस समय इस शरीर की क्या अवस्था थी और आज जब देखते हैं तो इसकी कैसी अवस्था है। ये संसार,ये शरीर पूर्व में जैसा था आज वैसा नहीं है और आज जैसा है,भविष्य में ऐसा नहीं रहेगा।यह निरंतर बदलने वाला है,बदल रहा है।लेकिन जो कभी नहीं बदलता सदा एकरूप बना रहता है वह केवल भगवद तत्व है,परमात्म तत्व है। हमारे प्रभु सीताराम जी निरंतर रहने वाले हैं और यह संसार  छूटनेवाला है। इसलिए हमें चाहिए कि हम दृढ़ता से यह मान लें कि प्रभु हमारे हैं और हम प्रभु के हैं।जैसे छोटा सा बालक कहता है कि मां मेरी है।कोई उससे पूछे कि बता मां तेरी क्यों है।तो इसका उत्तर उसके पास नहीं है।उसके मन में कोई शंका,कोई संदेह नहीं हैं। मां उसकी है, बस।फिर चाहे आप कुछ भी कहें, उसके लिए आपकी कोई बात महत्व ...

सुख और दुःख

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महाभारत के युद्ध में धृतराष्ट्र के सभी पुत्रों का वध हुआ और पांडवों का विजय तिलक , शोक में  डूबे धृतराष्ट्र ने विलाप करते हुए भगवान् श्री कृष्ण से पूछा प्रभु मैंने ऐसा कौन सा पाप किया था जिसके कारण मेरे सौ पुत्रों ने एक साथ मृत्यु को वरण किया , मुझे बताईये प्रभु l भगवान् ने धृतराष्ट्र को दिव्य दृष्टी प्रदान की जिससे की वह अपने पूर्व जन्मों के कर्मों को देख सके , धृतराष्ट्र ने देखा की पचास जन्म पूर्व वह एक बहेलिया था और उसने पक्षिओं को पकड़ने के लिए उनपर जलता हुआ जाल फेंक दिया था जिसके कारण सौ पक्षी उसमें जल कर मारे गए थे , अपने पचास जन्मों में संचित शुभ कर्मों के कारण ही उसे सुख और आनंद की प्राप्ति हुयी लेकिन जैसे ही उसके अच्छे कर्मों का पतन हुआ उसे उसके द्वारा किये गए बुरे कर्मों का फल मिला l धृतराष्ट्र ने जो इन पचास जन्मों में अच्छे कर्म किये थे उसका शुभ फल उसे मिला लेकिन क्योंकि बुरे कर्म भी उसके द्वारा बने थे उसे उसका भी फल प्राप्त हुआ l  यह एक कथा थी जिसे मैंने बचपन में अपने पिता के मुख से सुना था खैर कथा का आश्रय आप सभी समझ ही गए होंगे कि जीवन म...

ध्यान कैसे करें

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कोई कार्य करना और उस कार्य को सही से करना इन दोनों में काफी अंतर् है , मात्र हथोड़ा मारने से 'कील' दिवार में नहीं धंसती उस हथोड़े को सही जगह पर यानि की 'कील ' के बीचो बीच मारने पर ही उसे दिवार पर ठोका जा सकता है l यही 'फार्मूला' या  'सूत्र ' हर जगह पर लागू होता है , मेहनत करनी चाहिए पर सही दिशा में , यदि हम चले जा रहे हैं और हमे पता नहीं है कि जाना कहाँ है और किस  मार्ग से जाना है तो सब बेकार है  , ऐसे हालातों में हम अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँच पायेगें वरन बस घूमते रह जायेंगे l इसलिए हम सब को सही दिशा निर्देश की आवश्यकता सब से पहले है बाकि सब उसके बाद आता है l     उपर्युक्त सभी बातों को यदि हम अपने जीवन का 'सूत्र ' बना लें तो हमे अपने गंतव्य  तक पहुँचने से कोई रोक नहीं सकता , यहाँ पर हम जिस विषय पर आज प्रकाश डालने का प्रयत्न करेंगे वह है 'ध्यान ' , पूरे विश्व में ध्यान को लेकर आज काफी उत्साह लोगों के भीतर दिखाई पड़ता है , हर कोई ध्यान कर रहा है और अपने जीवन को आनंद से भरा हुआ पा रहा है , ध्यान की अनेक ...
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