कोई कार्य करना और उस कार्य को सही से करना इन दोनों में काफी अंतर् है , मात्र हथोड़ा मारने से 'कील' दिवार में नहीं धंसती उस हथोड़े को सही जगह पर यानि की 'कील ' के बीचो बीच मारने पर ही उसे दिवार पर ठोका जा सकता है l यही 'फार्मूला' या 'सूत्र ' हर जगह पर लागू होता है , मेहनत करनी चाहिए पर सही दिशा में , यदि हम चले जा रहे हैं और हमे पता नहीं है कि जाना कहाँ है और किस मार्ग से जाना है तो सब बेकार है , ऐसे हालातों में हम अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँच पायेगें वरन बस घूमते रह जायेंगे l इसलिए हम सब को सही दिशा निर्देश की आवश्यकता सब से पहले है बाकि सब उसके बाद आता है l
उपर्युक्त सभी बातों को यदि हम अपने जीवन का 'सूत्र ' बना लें तो हमे अपने गंतव्य तक पहुँचने से कोई रोक नहीं सकता , यहाँ पर हम जिस विषय पर आज प्रकाश डालने का प्रयत्न करेंगे वह है 'ध्यान ' , पूरे विश्व में ध्यान को लेकर आज काफी उत्साह लोगों के भीतर दिखाई पड़ता है , हर कोई ध्यान कर रहा है और अपने जीवन को आनंद से भरा हुआ पा रहा है , ध्यान की अनेक विधियां हैं जो की 'योग शास्त्रों ' में बताई गयी हैं l अपने रूचि के अनुसार ही साधक को योग मार्ग का अनुकरण करना चाहिए तभी वह अपने साध्य तक पहुँच पायेगा , ' याद रखें सही साधन ही साध्य तक ले जा सकता है ' इस सूत्र को जीवन में क्रियान्वित करने से ही हम अपने मंज़िल तक पहुँच पाएंगे l
ध्यान की विधियों में ही एक विधि है ' सगुन ब्रह्म ' का ध्यान , जो भक्त अपने भगवान को संसार के कण - कण में व्याप्त देखता है वही वास्तव में सत्य देखता है , ऐसा भगवान् श्री योगेश्वर स्वयं 'गीता ' में कहते हैं , ऐसा ही भक्त अपने भगवान् के श्री 'विग्रह ' का ध्यान करते हुए अंत में उन्ही में विलीन हो जाता है , उन्हें पा जाता है , भगवान् तो निर्गुण ही है लेकिन भक्त में वो सामर्थ है कि वह उस निर्गुण ब्रह्म को अपनी भक्ति से सगुन स्वरुप में ढाल सके , ब्रज धाम में गाए जाने वाले एक 'पद' में वर्णन मिलता है कि सियाराम कथा बहुतो ने लिखी है लेकिन 'तुलसीदास' जैसी मर्यादा कहीं नहीं , न जाने कितने ही लोग ताल और मंजीरा बजाते फिरते हैं लेकिन 'मीरा मतवाली ' सी चाह कहीं नहीं और अंत में कवि कहता है कि भगवान् 'नरसिंह' आज भी प्रत्येक 'खंबन ' में वास करते हैं किन्तु निकालने के लिए प्रह्लाद है ही नहीं तो निकले कहाँ से ....
पुनि ताल मंजीरा बजाती फिरे , मीरा मतवाली सी चाह कहाँ
सियाराम कथा कितनो ने लिखी , तुलसी जैसी मरजाद कहाँ
नरसिंह बसे प्रति खंबन में , पर काढ़न को पह्लाद कहाँ
यदि भक्त है तो उसके लिए भगवान् भी है किन्तु शर्त यही है कि वह भक्त होना चाहिए l आईये जानने का प्रयास करें की सही ध्यान कैसे हो , जिससे की हम अपने लक्ष्य उस परम आनंद स्वरुप परमात्मा को अपने हृदय मंदिर में प्रकट कर सकें l
राम बाम दिसि जानकी लखन दाहिनी ओर l
ध्यान सकल कल्याणमय सुरतरु तुलसी तोर l l
भगवान् श्री रामजी की बायीं ओर श्री जानकीजी हैं और दाहिनी ओर श्री लक्ष्मणजी हैं ...यह ध्यान सम्पूर्णरूप से कल्याणमय है , तुसलीदासजी कहते हैं कि मेरे लिए तो यह ध्यान 'मनमाना ' फल देने वाला कल्प वृष है l
दूसरा ध्यान ...
सीता लखन समेत प्रभु सोहत तुलसीदास l
हरषत सुर बरषत सुमन सगुन सुमंगल बास l l
श्री सीताजी और श्री लक्ष्मणजी के सहित प्रभु श्री रामजी सुशोभित हो रहे हैं , देवतागण हर्षित होकर फूल बरसा रहे हैं l भगवान् का यह सगुन ध्यान सुमंगल - परम कल्याण का निवासस्थान है l इसका अर्थ हुआ की प्रभु का यह ध्यान समस्त मंगलों का मूल है l
तीसरा ध्यान ...
पंचबटी बट बिटप तर सीता लखन समेत l
सोहत तुलसीदास प्रभु सकल सुमंगल देत l l
पंचवटी में ' वट वृक्ष ' के नीचे श्री सीताजी और श्री लक्ष्मणजी समेत प्रभु श्री रामजी सुशोभित हैं , प्रभु के इस परम विग्रह का ध्यान सब सुमंगलों का दाता है , अर्थात देने वाला है ...
इस प्रकार ध्यान करने से हम अपने प्रभु के समीप आसानी से पहुँच जायेंगे और अपने जीवन को आनंद से भरा हुआ पाएंगे l
-----------------जय श्री सीताराम ----------------
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