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Showing posts from October, 2019

हमारे तो एक प्रभु हैं...

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  बड़े भाग मानुष तन पावा। मनुष्य शरीर बड़े भाग्य से मिलता है,भगवान की कृपा से मिलता है।इसलिए यह शरीर भगवान के लिए है।उनको प्राप्त करने के लिए है। वास्तव में एक मेरे प्रभु श्री सीताराम जी के अलावा और किसी की सत्ता है ही नहीं।आप विचार करके देखें,ये शरीर,ये संसार मिटनेवाला है,निरंतर मिट रहा है। जब हम मां के पेट से पैदा हुए थे,उस समय इस शरीर की क्या अवस्था थी और आज जब देखते हैं तो इसकी कैसी अवस्था है। ये संसार,ये शरीर पूर्व में जैसा था आज वैसा नहीं है और आज जैसा है,भविष्य में ऐसा नहीं रहेगा।यह निरंतर बदलने वाला है,बदल रहा है।लेकिन जो कभी नहीं बदलता सदा एकरूप बना रहता है वह केवल भगवद तत्व है,परमात्म तत्व है। हमारे प्रभु सीताराम जी निरंतर रहने वाले हैं और यह संसार  छूटनेवाला है। इसलिए हमें चाहिए कि हम दृढ़ता से यह मान लें कि प्रभु हमारे हैं और हम प्रभु के हैं।जैसे छोटा सा बालक कहता है कि मां मेरी है।कोई उससे पूछे कि बता मां तेरी क्यों है।तो इसका उत्तर उसके पास नहीं है।उसके मन में कोई शंका,कोई संदेह नहीं हैं। मां उसकी है, बस।फिर चाहे आप कुछ भी कहें, उसके लिए आपकी कोई बात महत्व ...

दीपावली क्यों मनाते हैं

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दीपावली  का पर्व खुशियों का पर्व है , आनंद और उल्लास का पर्व है ,  यह  त्योहार  विजय  का  प्रतिक  है ,  विजय  असत्य  पर  सत्य  की , अंधकार  पर प्रकाश की  l  भारत  एक  ऐसा  राष्ट्र  है  जिसके  प्रत्येक  स्वास में  अनेक त्योहारों  और उत्सवों की महक समाहित है जिसने सभी को अपने सुगंध से सुगन्धित कर रखा है l दिवाली का त्योहार भी ऐसा ही एक त्योहार है जिसके आगमन से राष्ट्र का कण  - कण प्रकाशित हो जाता है , उसके सुगंध के सुगन्धित हो जाता है l इस दिन हर व्यक्ति अपने घरों के साथ -साथ अपने मन की भी सफाई करता है और मन में बसे विकारों को स्वयं से दूर करता है वह असत्य से सत्य की ओर जाने की पार्थना करता है 'असतो मा सद्गमय ' l इस हर्षोल्लास के पर्व को पांच दिनों तक मनाया जाता है , हिंदू पंचाग के अनुसार दीवाली हर साल कार्तिक अमावस्या की तिथि को मनाई जाती है l इसका शुभारम्भ कब से हुआ ,इसको लेकर कई पौराणिक कथाएं हैं l आईये हम एक -एक कर दीपावली से सम्बंधित पौराणिक कथाओं पर...

'सेवा' ही श्रेष्ठ धर्म है

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साधु और असाधु में बस इतना ही अंतर् है कि साधु जगत के लिए जीता है तो असाधु स्वयं के लिए l जिस विधाता ने साधु को जन्म दिया उसी विधाता ने असाधु को भी जन्म दिया किन्तु परोपकार के अद्भुत गुण के कारण साधु जग में पूजनीय हो गया l ' भलेउ पोच सब बिधि उपजाए '  ( मानस बालकांड) l सेवा का धर्म श्रेष्ठ धर्म है जो सेवा करना जनता है वही वास्तव में जीवन को जानता है l दूसरों के  हित में ही मनुष्य का अपना हित निहित होता है यदि मनुष्य दूसरों की सेवा का कार्य करता है , दूसरों के लिए सुख का बीजारोपण करता है तो वह स्वतः भी आनंद को प्राप्त करता है                       चार वेद षट्शास्त्र में बात मिली हैं दोय           सुख दीन्हें सुख होत है , दुःख दीन्हें दुःख होय जीवन में आनंद और असीम शांति तो सेवा से ही प्राप्त की जा सकती है , संसार में परहित से बड़ा और कुछ भी नहीं l वृक्ष कभी अपना फल नहीं खाता , नदी अपना जल कभी नहीं पीती और साधु अर्थात अच्...
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