हमारे तो एक प्रभु हैं...

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  बड़े भाग मानुष तन पावा। मनुष्य शरीर बड़े भाग्य से मिलता है,भगवान की कृपा से मिलता है।इसलिए यह शरीर भगवान के लिए है।उनको प्राप्त करने के लिए है। वास्तव में एक मेरे प्रभु श्री सीताराम जी के अलावा और किसी की सत्ता है ही नहीं।आप विचार करके देखें,ये शरीर,ये संसार मिटनेवाला है,निरंतर मिट रहा है। जब हम मां के पेट से पैदा हुए थे,उस समय इस शरीर की क्या अवस्था थी और आज जब देखते हैं तो इसकी कैसी अवस्था है। ये संसार,ये शरीर पूर्व में जैसा था आज वैसा नहीं है और आज जैसा है,भविष्य में ऐसा नहीं रहेगा।यह निरंतर बदलने वाला है,बदल रहा है।लेकिन जो कभी नहीं बदलता सदा एकरूप बना रहता है वह केवल भगवद तत्व है,परमात्म तत्व है। हमारे प्रभु सीताराम जी निरंतर रहने वाले हैं और यह संसार  छूटनेवाला है। इसलिए हमें चाहिए कि हम दृढ़ता से यह मान लें कि प्रभु हमारे हैं और हम प्रभु के हैं।जैसे छोटा सा बालक कहता है कि मां मेरी है।कोई उससे पूछे कि बता मां तेरी क्यों है।तो इसका उत्तर उसके पास नहीं है।उसके मन में कोई शंका,कोई संदेह नहीं हैं। मां उसकी है, बस।फिर चाहे आप कुछ भी कहें, उसके लिए आपकी कोई बात महत्व ...

दीपावली क्यों मनाते हैं






दीपावली  का पर्व खुशियों का पर्व है , आनंद और उल्लास का पर्व है ,  यह  त्योहार  विजय  का  प्रतिक  है ,  विजय  असत्य  पर  सत्य  की , अंधकार  पर प्रकाश की  l  भारत  एक  ऐसा  राष्ट्र  है  जिसके  प्रत्येक  स्वास में  अनेक त्योहारों  और उत्सवों की महक समाहित है जिसने सभी को अपने सुगंध से सुगन्धित कर रखा है l दिवाली का त्योहार भी ऐसा ही एक त्योहार है जिसके आगमन से राष्ट्र का कण  - कण प्रकाशित हो जाता है , उसके सुगंध के सुगन्धित हो जाता है l इस दिन हर व्यक्ति अपने घरों के साथ -साथ अपने मन की भी सफाई करता है और मन में बसे विकारों को स्वयं से दूर करता है वह असत्य से सत्य की ओर जाने की पार्थना करता है 'असतो मा सद्गमय ' l इस हर्षोल्लास के पर्व को पांच दिनों तक मनाया जाता है , हिंदू पंचाग के अनुसार दीवाली हर साल कार्तिक अमावस्या की तिथि को मनाई जाती है l इसका शुभारम्भ कब से हुआ ,इसको लेकर कई पौराणिक कथाएं हैं l आईये हम एक -एक कर दीपावली से सम्बंधित पौराणिक कथाओं पर दृष्टिपात करें l 

१.अयोध्या में प्रभु के लौटने का उत्सव 
श्री तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के प्रथम कांड बालकाण्ड में कहा कि' भनिति मोरि सब गुन रहित ,बिस्व विदित गुन एक ' l अर्थात मेरी रचना सब गुणों से रहित है किन्तु विश्वविदित इसमें एक गुण है ' एहि मँह  रघुपति नाम उदारा l अति पावन पुरान श्रुति सारा ' l इसमें भगवान् का उदार नाम है जो अति पवित्र है तथा जो वेदों और पुराणों का सार है l आगे वे कहते हैं कि भले ही मेरी रचना गांव की भाषा में होने के कारण लोगों भद्दी लगे किन्तु इसमें रामकथा रूपी उत्तम वस्तु का वर्णन है जिसके कारण यह सभी के हृदय में वास करेगी l यह बताने का यही कारण है कि अगर विष को भी राम से जोड़ दिया जाये तो वह विश्राम होगा विराम नहीं l भगवान् राम से जिसने भी नाता जोड़ा वह शुद्ध हो गया ,पतित से पावन हो गया  l ऐसे प्रभु राम जब जीवन में न हों तब जीवन शोकाकुल हो जाता है ,शोक में डूब जाता है l जब भगवान् राम ,माता जानकी और भाइया लखन के साथ अयोध्या से १४ वर्ष के वनवास के लिए जंगलों में गए तब अयोध्या वासियों का जीवन भी शोकग्रस्त हो चला  ,उनके जीवन से सुख छिन गया , पूरे नगर में खलबली मच गयी ,हृदय में ऐसी पीड़ा उठी जो बिना रामजी के वापस आये नहीं मिटने वाली थी ,अयोध्या में होने वाले सभी प्रकार के आनंद मिट गए 'खरभरु नगर सोचु सब काहू l दुसह दाहु उर मिटा उछाहू ' l अयोध्या के दुखों का अंत तभी हुआ जब भगवान् पुनः उनके जीवन में लौट कर आये उस दिन पूरी अवध नगरी दीपों के उजाले से जगमगा उठी ,एक लम्बे अरसे के बाद लोगों के जीवन में श्रीसीताराम जी का आगमन हुआ जिससे उनका जीवन प्रेममय हों गया आनंदमय होगया ,अयोध्या में उस दिन दीपावली मनाई गयी l तब से दीपों के इस पर्व दीपावली को लोग बड़े ही धूम -धाम से मानते हैं l 

२.भगवान् धनवंतरी का प्राकट्य दिवस 
इस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को भगवान धनवंतरी का अवतरण हुआ था , समुद्र मंथन के समय इसी तिथि को भगवान् धनवंतरी अमृत कलश लेकर प्रगट हुए थे , तभी से उनके जन्मदिवस के रूप में धनतेरस का पर्व मनाया जाता है l धन का अर्थ सोना -चाँदी नहीं है अपितु आरोग्य  है , मनुष्य का शरीर ही उसका सब से बड़ा धन है इसलिए इस दिन आरोग्य के देवता भगवान् धनवंतरी से अच्छे स्वास्थ्य की कामना की जाती है l भगवान् धनवंतरी के पश्चात माता लक्ष्मी का आगमन समुद्र मंथन द्वारा हुआ था इसलिए उनका स्वागत दीपों को अपने घर के द्वार पर रख कर किया जाता है l 

३.नरका सुर का वध 
प्रागज्योतिषपुर नामक नगर का एक असुर था जिसका नाम नरका सुर था ,उसे श्राप था कि कोई स्री ही उसके वध का कारण बनेगी , भगवान् श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की सहायता से उस असुर नरका सुर का वध कर दिया l उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि थी l नरका सुर के अत्याचारों से मुक्ति मिलने पर उस दिन लोगों ने दीपोत्स्व मनाया ,इसलिए हर वर्ष चतुर्दशी तिथि को छोटी दीवाली या नरक चतुर्दशी मनाई जाती है l 

४.गोवर्धन पूजा 
इंद्र के प्रकोप के कारण मूसलाधार बारिश से बचने के लिए भगवान् श्रीकृष्ण ने ७ दिनों तक गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठाए रखा l जिसके कारण सभी ब्रजवासी गोवर्धन पर्वत की शरण में सुरक्षित हुए  l भगवान् ने सातवें दिन पर्वत को नीचे रखा और सभी को गोवर्धन पूजा के साथ अन्नकूट मनाने को कहा l तब से दीपावली के अगले दिन यानि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा और अन्नकूट मनाया जाने लगा l 

५.भाई दूज 
पौराणिक कथा के अनुसार यमराज ने अपनी बहन को वरदान दिया था कि वे हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को उनसे मिलने आएंगे , इसलिए हर वर्ष दीपावली के पांचवें दिन अर्थात दिवाली के एक दिन बाद ही यह पर्व भाई दूज मनाया जाता है l 

इस तरह दीपावली का यह पर्व मनाया जाने लगा जिसने सभी के जीवन को आनंद से भर दिया ,प्रेम से भर दिया l आप सभी को दीपावली की हार्दिक बधाई l 

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