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Showing posts from February, 2021

हमारे तो एक प्रभु हैं...

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  बड़े भाग मानुष तन पावा। मनुष्य शरीर बड़े भाग्य से मिलता है,भगवान की कृपा से मिलता है।इसलिए यह शरीर भगवान के लिए है।उनको प्राप्त करने के लिए है। वास्तव में एक मेरे प्रभु श्री सीताराम जी के अलावा और किसी की सत्ता है ही नहीं।आप विचार करके देखें,ये शरीर,ये संसार मिटनेवाला है,निरंतर मिट रहा है। जब हम मां के पेट से पैदा हुए थे,उस समय इस शरीर की क्या अवस्था थी और आज जब देखते हैं तो इसकी कैसी अवस्था है। ये संसार,ये शरीर पूर्व में जैसा था आज वैसा नहीं है और आज जैसा है,भविष्य में ऐसा नहीं रहेगा।यह निरंतर बदलने वाला है,बदल रहा है।लेकिन जो कभी नहीं बदलता सदा एकरूप बना रहता है वह केवल भगवद तत्व है,परमात्म तत्व है। हमारे प्रभु सीताराम जी निरंतर रहने वाले हैं और यह संसार  छूटनेवाला है। इसलिए हमें चाहिए कि हम दृढ़ता से यह मान लें कि प्रभु हमारे हैं और हम प्रभु के हैं।जैसे छोटा सा बालक कहता है कि मां मेरी है।कोई उससे पूछे कि बता मां तेरी क्यों है।तो इसका उत्तर उसके पास नहीं है।उसके मन में कोई शंका,कोई संदेह नहीं हैं। मां उसकी है, बस।फिर चाहे आप कुछ भी कहें, उसके लिए आपकी कोई बात महत्व ...

'वियोग' से कल्याण

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 रहा एक दिन अवधि कर अति आरत पुर लोग। जहँ तहँ सोचहिं नारि नर कृस तन राम वियोग।। श्री रामचरितमानस के उत्तरकांड का यह प्रथम दोहा, हमारे अनेकानेक प्रश्नों का उत्तर अपने भीतर समाहित किये हुए है।जीवन में हर व्यक्ति कुछ पाने की इच्छा रखता है किंतु उस इच्छा को पूर्ण करने के लिए जो तत्परता चाहिए प्रायः हमें लोगों में उसका अभाव देखने को मिलता है।चाहे लक्ष्य लौकिक हो अथवा पारलौकिक उसको प्राप्त करने के लिए जीव में आतुरता तो होनी ही चाहिए।भक्ति पाने के लिए यह आवश्यक है कि भक्त के मन में भगवान के प्रति दृढ़ प्रेम और विश्वास हो क्योंकि बिना विश्वास प्रेम नहीं होता ,प्रेम के मूल में विश्वास का ही निवास होता है। भगवान के पुनः अयोध्या लौटने की अवधि का मात्र एक दिन शेष रह जाता है,अतएव अयोध्यापुरी के समस्त नर-नारी भगवान के दर्शन हेतु आतुर हो रहे हैं।श्री सीतारामजी के वियोग में नगर वासियों का शरीर दुबला हो गया है,जहाँ-तहाँ लोग विचार कर रहें हैं कि आखिर क्या बात है कि प्रभु अभी तक आए नहीं। जो मुख्य अर्थ हमारे लिए इस दोहे में निहित है,वह है -वियोग।नगर के सभी लोग श्री सीतारामजी के वियोग में अशांत ...