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Showing posts from October, 2023

हमारे तो एक प्रभु हैं...

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  बड़े भाग मानुष तन पावा। मनुष्य शरीर बड़े भाग्य से मिलता है,भगवान की कृपा से मिलता है।इसलिए यह शरीर भगवान के लिए है।उनको प्राप्त करने के लिए है। वास्तव में एक मेरे प्रभु श्री सीताराम जी के अलावा और किसी की सत्ता है ही नहीं।आप विचार करके देखें,ये शरीर,ये संसार मिटनेवाला है,निरंतर मिट रहा है। जब हम मां के पेट से पैदा हुए थे,उस समय इस शरीर की क्या अवस्था थी और आज जब देखते हैं तो इसकी कैसी अवस्था है। ये संसार,ये शरीर पूर्व में जैसा था आज वैसा नहीं है और आज जैसा है,भविष्य में ऐसा नहीं रहेगा।यह निरंतर बदलने वाला है,बदल रहा है।लेकिन जो कभी नहीं बदलता सदा एकरूप बना रहता है वह केवल भगवद तत्व है,परमात्म तत्व है। हमारे प्रभु सीताराम जी निरंतर रहने वाले हैं और यह संसार  छूटनेवाला है। इसलिए हमें चाहिए कि हम दृढ़ता से यह मान लें कि प्रभु हमारे हैं और हम प्रभु के हैं।जैसे छोटा सा बालक कहता है कि मां मेरी है।कोई उससे पूछे कि बता मां तेरी क्यों है।तो इसका उत्तर उसके पास नहीं है।उसके मन में कोई शंका,कोई संदेह नहीं हैं। मां उसकी है, बस।फिर चाहे आप कुछ भी कहें, उसके लिए आपकी कोई बात महत्व ...

हमारे तो एक प्रभु हैं...

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  बड़े भाग मानुष तन पावा। मनुष्य शरीर बड़े भाग्य से मिलता है,भगवान की कृपा से मिलता है।इसलिए यह शरीर भगवान के लिए है।उनको प्राप्त करने के लिए है। वास्तव में एक मेरे प्रभु श्री सीताराम जी के अलावा और किसी की सत्ता है ही नहीं।आप विचार करके देखें,ये शरीर,ये संसार मिटनेवाला है,निरंतर मिट रहा है। जब हम मां के पेट से पैदा हुए थे,उस समय इस शरीर की क्या अवस्था थी और आज जब देखते हैं तो इसकी कैसी अवस्था है। ये संसार,ये शरीर पूर्व में जैसा था आज वैसा नहीं है और आज जैसा है,भविष्य में ऐसा नहीं रहेगा।यह निरंतर बदलने वाला है,बदल रहा है।लेकिन जो कभी नहीं बदलता सदा एकरूप बना रहता है वह केवल भगवद तत्व है,परमात्म तत्व है। हमारे प्रभु सीताराम जी निरंतर रहने वाले हैं और यह संसार  छूटनेवाला है। इसलिए हमें चाहिए कि हम दृढ़ता से यह मान लें कि प्रभु हमारे हैं और हम प्रभु के हैं।जैसे छोटा सा बालक कहता है कि मां मेरी है।कोई उससे पूछे कि बता मां तेरी क्यों है।तो इसका उत्तर उसके पास नहीं है।उसके मन में कोई शंका,कोई संदेह नहीं हैं। मां उसकी है, बस।फिर चाहे आप कुछ भी कहें, उसके लिए आपकी कोई बात महत्व ...

आखिर क्यों हुई नारद जी को चिंता? रामचरितमानस रहस्य ( भाग -1)

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श्री नारद जी भगवान के भक्त हैं, वैष्णों में उत्तम हैं ( नारद वैष्णवोत्तमम) अतः वे निरंतर दूसरों के कल्याण को लेकर चिंतित रहते हैं। वास्तव में वैष्णव वही है जो सदा सब के सुख की कामना में रत रहता है,सबके कल्याण की कामना में रत रहता है। जो केवल स्वयं के बारे में सोचता है, निज स्वार्थ का ही पोषण करता है,वह वैष्णव नहीं है,वह भक्त नहीं है।वह तो मात्र दंभी है,पाखंडी है। एक बार की बात है भक्तराज श्री नारद जी महाराज समस्त लोकों पर कृपा करते हुए,समस्त लोकों को भगवन्नाम,लीला, गुण सुनाते हुए,उन्हे पवित्र करते हुए। ब्रह्म लोक पहुंचे।वहां मूर्तिमान वेदों से घिरे हुए,बाल सूर्य के समान प्रभा से पूरे सभा भवन को दीप्यमान करते हुए,प्रकाशित करते हुए, मार्कण्डेय आदि ऋषियों से बारंबार स्तुति किए जाते हुए, संपूर्ण पदार्थों का ज्ञान रखने वाले तथा भक्तों की समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाले जगत के सृजन करता श्री ब्रह्मा जी को देखर कर,नारद जी ने उन्हें दंडवत प्रणाम किया और भक्ति भाव से उनकी स्तुति करने लगे…पिताम्: ब्रह्मा जी बड़े प्रसन्न हुए और नारद जी से बोले - हे! नारद बड़े दिनों बाद आए हो पुत्र,बताओ क्य...

वेदांत क्या है?

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  विषय की दृष्टि से वेदों के तीन भाग हैं,जिन्हे तीन कांडों के रूप में भी जाना जाता है। कर्मकांड,उपासना कांड और ज्ञानकांड। ज्ञानकांड वेद का शीर्ष स्थानीय भाग है,अर्थात अंतिम भाग है।और क्योंकि यह वेद का अंतिम भाग है,अंतिम कांड है,इसलिए इसे ही वेदांत कहा गया।विश्व के मूल तत्त्व का विचार,सृष्टि के आदि कारण परमात्म तत्व का विचार इसी ज्ञानकांड में किया गया है। ज्ञान कांड सिद्धांत है।और कर्मकांड तथा उपासना कांड ये साधन स्वरूप हैं।इसका अभिप्राय यह हुआ कि कर्म और उपासना ये योग्यता प्रदान करते हैं,जीवन में जब हम कर्म करते हैं,तब हम उस कर्म के द्वारा योग्य बनते हैं, और फिर हमारी योग्यता के अनुरूप चीज़ें हमें प्राप्त होती हैं। ऐसे ही कर्म और उपासना ये साधन हैं,उस परमात्म तत्त्व को प्राप्त करने में। जब कर्म और उपासना के द्वारा हमारा अंतः करण शुद्ध हो जाता है,तब वह परमात्म तत्व स्वत: ही प्रकट हो जाता है।प्यारे साथियों,परमात्मा को प्राप्त नहीं करना है क्योंकि वह तो प्राप्त ही है।हमारे भीतर ही अंतर्यामी रूप से विद्यमान है। अस प्रभु हृदय अछत अविकारी (मानस) हमें तो बस कर्म और उपासना का आश्रय लेक...