वेदांत क्या है?
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विषय की दृष्टि से वेदों के तीन भाग हैं,जिन्हे तीन कांडों के रूप में भी जाना जाता है। कर्मकांड,उपासना कांड और ज्ञानकांड। ज्ञानकांड वेद का शीर्ष स्थानीय भाग है,अर्थात अंतिम भाग है।और क्योंकि यह वेद का अंतिम भाग है,अंतिम कांड है,इसलिए इसे ही वेदांत कहा गया।विश्व के मूल तत्त्व का विचार,सृष्टि के आदि कारण परमात्म तत्व का विचार इसी ज्ञानकांड में किया गया है। ज्ञान कांड सिद्धांत है।और कर्मकांड तथा उपासना कांड ये साधन स्वरूप हैं।इसका अभिप्राय यह हुआ कि कर्म और उपासना ये योग्यता प्रदान करते हैं,जीवन में जब हम कर्म करते हैं,तब हम उस कर्म के द्वारा योग्य बनते हैं, और फिर हमारी योग्यता के अनुरूप चीज़ें हमें प्राप्त होती हैं। ऐसे ही कर्म और उपासना ये साधन हैं,उस परमात्म तत्त्व को प्राप्त करने में। जब कर्म और उपासना के द्वारा हमारा अंतः करण शुद्ध हो जाता है,तब वह परमात्म तत्व स्वत: ही प्रकट हो जाता है।प्यारे साथियों,परमात्मा को प्राप्त नहीं करना है क्योंकि वह तो प्राप्त ही है।हमारे भीतर ही अंतर्यामी रूप से विद्यमान है।
अस प्रभु हृदय अछत अविकारी (मानस)
हमें तो बस कर्म और उपासना का आश्रय लेकर अपने अंतः करण की मलीनता को धो देना है।फिर वह दर्पण में मुख की भांति स्वयं प्रकट हो जायेगा।
प्यारे साथियों,तो वेद के अंतिम भाग को,कांड को ही वेदांत कहा गया,इसी वेदांत को ही ब्रम्ह विद्या कहा गया।और इसे ही हमारे आचार्यों ने उपनिषद भी कहा। अतः आप कह सकते हैं, कि वेदांत ही ब्रम्ह विद्या का आदि स्त्रोत है। ये ब्रम्ह विद्या ही समत्व का दर्शन कराती है,अज्ञान की ग्रंथियां ब्रम्ह विद्या से ही कटती हैं। चित्त की चंचलता का निरोध तथा परम सत्य का बोध ब्रह्म विद्या से ही संभव होता है। लेकिन यह ब्रम्ह विद्या, यूंही प्राप्त नहीं हो जाती। यह विद्या अत्यंत दुर्लभ है,और बड़ी कठिनता से प्राप्त होती है। प्यारे साथियों,आज कल वेदांत के नाम पर आचार्य बन कर जहां देखो,जिसे देखो ज्ञान बांट रहे हैं। जैसे ब्रम्ह विद्या कोई रेवड़ी हो। नाम तो वेदांत का लेते हैं लेकिन वेदांत के नाम पर लोगों को मूर्ख बनाना,ठगना,यही उनका पेशा है।
इसलिए आप लोगों से अनुरोध है कि ऐसे लोगों के बहकावे में बिलकुल न आवें। इनको वेदांत का कोई ज्ञान नहीं है बस वेदांत के नाम पर अनर्गल प्रलाप करना,झूठ बोलना ही इनके लिए अभीष्ट है।
प्यारे साथियों,वेदांत का महत्व वैदिक आचार्यों को ही मान्य हो - ऐसा नहीं है। न जाने कितने ही अन्य धर्मों को मानने वाले लोगों ने भी वेदांत की मुक्त कंठ से प्रशंसा की है।वे सब वेदांत की गंभीरता, मधुरता और तात्विकता पर मुग्ध हुए हैं। मंसूर, सर्मद,फैजी,बुल्लाशाह और दाराशिको जैसे महानुभाव जो इस्लाम धर्म के मानने वाले थे,उन्होंने भी वेदांत के सिद्धांतो को अपने जीवन का सर्वस्व माना था। मंसूर और सर्मद ने तो सिर देकर भी इस सिद्धांत को छोड़ना पसंद नहीं किया।
अल्हिल्लाज मंसूर को तो मुसलमानों ने सूली पर लटका दिया था। क्यों? क्योंकि उसने अनहलक की घोषणा की थी।उसने घोषणा की, कि मैं ही परमात्मा हूं। अहम् ब्रम्हास्मि ।और इस्लाम धर्म में इस प्रकार की घोषणा पाप है,कुफ्र है।
सरमद के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था।बड़ी बेरहमी से मारा था,सरमद को। वह हजारों लाखों के लिए अल्लाह का पैगंबर था। उसे काफिर करार दे दिया गया । और उसका कुफ्र क्या था? तो दिल्ली के प्रधान काज़ी के मुताबिक सरमद का कुफ्र था: दिल्ली की सड़कों पर ‘’अनलहक, अनलहक…चिल्लाते हुए गुजरना,। यह कुरान की तोहीन थी क्योंकि कुरान के अनुसार, बस एक ही अल्लाह है। और सरमद सरेआम अपने आप को ही अल्लाह कहता फिर रहा था।
अपना सिर काटने के लिए करीब आते हुए जल्लाद को देख कर सरमद मुस्कुराया और बोला - ’या खुदा, आज तू मेरे पास इस शक्ल में आया है।‘’
और जब उसका सिर काटा गया तो उसके खून का कतरा-कतरा बोल उठा, ‘’अनलहक़, अनलहक़… अनहलक।‘’इस तरह प्राण दे कर भी मंसूर और सरमद ने वेदांत के ब्रम्ह ज्ञान का त्याग नहीं किया। और इतिहास में सदा के लिए वे दोनों अमर हो गए।
वेदांत के महत्व को पश्चिम के विद्वानों ने भी बड़ी मान्यता दी है। मैक्स मुलर ने कहा -
"The Upanishads are the source of the vedant philosophy,a system in which human speculation seems to me to have reached its very acme"
अर्थात उपनिषद वेदांत दर्शन के आदि स्त्रोत हैं और ये ऐसे निबंध हैं जिनमें मानवी भावना अपने उच्चतम शिखर पर पहुंच गई मालूम होती है।
इसी तरह ,शोपेनहर ने कहा -
"In the world there is no study so beneficial and so elevating as that of Upanishads...they are a product of the highest wisdom....it is destined sooner or later to become faith of the people"
अर्थात सारे संसार में ऐसा कोई स्वाधाय नहीं है जो उपनिषदों के समान उपयोगी और उन्नति की और ले जाने वाला हो।वे उच्चतम बुद्धि की उपज हैं।आगे या पीछे एक दिन ऐसा होना है कि यही जनता का धर्म होगा।
प्यारे साथियों,विद्या का,ज्ञान का कोई धर्म अथवा जाति नहीं होती। जाति और धर्म में मनुष्य का विभाजन तो हो सकता है किंतु ज्ञान का नहीं।इसलिए चाहे कोई किसी भी धर्म अथवा जाति का क्यों न हो,जो अधिकारी है,जिसमें पात्रता है,वेदांत उसी का वरण करता है।और उसे छू कर सोना बना देता है,सबका आभूषण बना देता है।
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