हमारे तो एक प्रभु हैं...

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  बड़े भाग मानुष तन पावा। मनुष्य शरीर बड़े भाग्य से मिलता है,भगवान की कृपा से मिलता है।इसलिए यह शरीर भगवान के लिए है।उनको प्राप्त करने के लिए है। वास्तव में एक मेरे प्रभु श्री सीताराम जी के अलावा और किसी की सत्ता है ही नहीं।आप विचार करके देखें,ये शरीर,ये संसार मिटनेवाला है,निरंतर मिट रहा है। जब हम मां के पेट से पैदा हुए थे,उस समय इस शरीर की क्या अवस्था थी और आज जब देखते हैं तो इसकी कैसी अवस्था है। ये संसार,ये शरीर पूर्व में जैसा था आज वैसा नहीं है और आज जैसा है,भविष्य में ऐसा नहीं रहेगा।यह निरंतर बदलने वाला है,बदल रहा है।लेकिन जो कभी नहीं बदलता सदा एकरूप बना रहता है वह केवल भगवद तत्व है,परमात्म तत्व है। हमारे प्रभु सीताराम जी निरंतर रहने वाले हैं और यह संसार  छूटनेवाला है। इसलिए हमें चाहिए कि हम दृढ़ता से यह मान लें कि प्रभु हमारे हैं और हम प्रभु के हैं।जैसे छोटा सा बालक कहता है कि मां मेरी है।कोई उससे पूछे कि बता मां तेरी क्यों है।तो इसका उत्तर उसके पास नहीं है।उसके मन में कोई शंका,कोई संदेह नहीं हैं। मां उसकी है, बस।फिर चाहे आप कुछ भी कहें, उसके लिए आपकी कोई बात महत्व ...

धर्मशास्त्रोंसे ही शान्तिका संदेश मिल सकता है





(1) धर्म के बिना मानव पशुके समान माना गया है l धर्मशास्त्रानुसार जीवन यापन करने वाला ही 'मानव' कहलाने का अधिकारी  है l हमारे  धर्म शास्त्रोंमें  मानव को पग - पगपर सत-मार्ग पर चलने की  प्रेरणा दी  गयी है l धर्मशास्त्रों  में वर्णित  परम्पराओं का  उल्लंघन  करने के कारन  ही आज मानव दानव बनता  जा रहा है l धर्मशास्त्रों की अवहेलना  कर मन   माने ढंग  के खान  - पान तथा आहार-विहार  के कारण  ही पूरा  संसार अशान्ति से  त्रस्त है l धर्मशास्त्रोंद्वारा बताये सात्विकताके मागपर  चलनेमें ही कल्याण  है l
      आज देश  का यह महान   दुर्भाग्य  है की हमारे धर्मप्राण  भारत  में राजसी और तामसी  वृत्ति बढ़ती जा रही  है तथा सतोगुण क्षीण होता जा रहा है l दूसरे  देशोंमें  एक रष्ट्राध्यक्षका सिर काटक दूसरा राष्ट्राध्यक्ष  बनता है , अभी  भारत में ऐसा नहीं है हमारे धर्म प्राण देश में सतोगुण बढ़ना  चाहिए ,अन्यथा हमारे यहाँ  भी दूसरे  देशोंकी  तरह  हिंसा  बढ़ेगी , अब  शयद  ऐसा ही हो रहा है l आज देश में  फूट और स्वार्थकी नीति  नाश  कर रही है , पता नहीं  देश में क्या होगा  ? भारत अखण्ड रहे और खण्डित न होने  पाए  , ऐसा प्रयत्न हम  सभी को करना चाहिए l


(2).   मानव शांति चाहता  है l शान्ति पाने  के लिए वह बहुत  कुछ प्रयत्न करता रहता है परन्तु  शान्ति के  बदलेमें  अशान्तिका  ही अनुभव  कर रहा है l इसलिए  हमको  सोचना  है की हमने लक्ष्य  पाने के लिए जो रास्ता  चुना है, वह ठीक है या नहीं  l हम ज्यादातर  अपने लौकिक  सुख  को लक्ष्य में रखकर ,दूसरों  की तरफ  दृस्टि डाले बिना बहुत कुछ करते  रहते हैं  l हम यह भूलते  जा रहें  है की अपने किये हुए कर्मोंका  फल  अवश्य  ही भोगना  पड़ता  है l बहुतसे  लोग इस निश्चय पर  अड़  गए हैं की मरने  के बाद कुछ नहीं है या सब कुछ ठीक हो जायेगा  , यानि हमें  बुरे कर्मोंका फल भोगनेकी जरुरत  है ही नहीं l यदि किसी  आदमी को यह विश्वास हो जाये की अपने किये हुए अच्छे  या बुरे कर्मोंका फल हमें  भोगना ही पड़ता है ,तब हम बहुत से बुरे कर्ममोंके  करने से जरूर बच  सकते  है l अच्छे बुरे कर्मोंका  निर्णय  केवल  हमारे अनुभवसे  ही नहीं ,अपितु  श्री रामचरितमानस  जैसे  उत्तम   ग्रंथोंसे ही हो सकता है l हम भगवानके ऊपर श्रद्धा और भक्ति रखें तो बुरे कर्म  भी नहीं होंगे और यदि मनमानी करते रहे तो हम जिस लक्ष्य पर पहुँचना चाहतें  हैं ,वहाँ बिलकुल नहीं पहुंच सकते l यदि हम संतोंकी वणियोंका  अध्ययन कर उनके  अनुसर  अपना जीवन यापन करें  तो अवश्य  शान्ति पायेंगे और सुखी रहेंगे  l


(3).  हमे आनंद भरा  जीवन जीने के लिए शास्त्रानुसार  सत्य कर्म  करने चाहिए और मानसिक शुद्धता की  ओर ध्यान  देना चाहिए , बिना मानसिक शुद्धता  के मनुष्य आनंद और शान्ति भरा जीवन नहीं जी सकता साथ ही साथ शास्त्रानुसार सत्य के मार्ग पर चले  बिना मनुष्य  अपने अंतिम  लक्ष्य  मोक्ष  को  भी प्राप्त नहीं कर सकते l


(4).     समाजमें  अनुशाशन  और व्यवस्था   बनाये  रखनेके लिए मनुष्यय के जीवन में धर्मशास्त्रोंका तथा धर्म का बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है l आज हमारे देश में लोगोंमें धर्म के प्रति विश्वास में कमी होने के कारन शान्ति-व्यवस्थाके के लिए बनाये गए कानूनों का उल्लंघन होता है l सच्चा धर्म मनुष्य को कानूनोका पालन करने के लिए वैसे ही प्रेरित करता है ,जैसे धार्मिक नियमो और मर्यादायोंका पालन करने के लिए करता है l धार्मिक आस्थाओंके फलस्वरूप लोगोंके बीच सम्पत्तिके समुचित वितरणको बल मिलता है ,क्योंकि इस बारे में हमारे शास्त्रोंमें यह कहा गया है की आवशकता से अधिक सम्पति अर्जित करना चोरी के सामान है l हिन्दूधर्ममें संतोंने देश की भावनात्मक एकता को सुदृढ़ करने के लीये ही विभिन भागोंमें मठों की स्थापना की थी ,जिससे समस्त भारत के हिंदुयोंमें एकता बानी रहे और धर्म का प्रचार-प्रसार तथा धर्मकी रक्षा होती रहे l संतोंने देश की एकता बनाये रखने में और धर्म की रक्षा करनेमें एवं हिन्दुओं को विधर्मी होनेसे बचाने में अपना पूरा जीवन और अपनी तपो शक्ति लगा दी , जिसके कारन भारत की अखण्डता और एकता को बड़ी- बड़ी ताकतें भी न तोड़ पायीं l
      इसलिए हम सभी को अपने धर्मशात्रोंके के अनुसार चल कर उत्तम जीवन जीना  चाहिए l 

          ---------------------------जयश्री सीताराम--------------------------

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