हमारे तो एक प्रभु हैं...

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  बड़े भाग मानुष तन पावा। मनुष्य शरीर बड़े भाग्य से मिलता है,भगवान की कृपा से मिलता है।इसलिए यह शरीर भगवान के लिए है।उनको प्राप्त करने के लिए है। वास्तव में एक मेरे प्रभु श्री सीताराम जी के अलावा और किसी की सत्ता है ही नहीं।आप विचार करके देखें,ये शरीर,ये संसार मिटनेवाला है,निरंतर मिट रहा है। जब हम मां के पेट से पैदा हुए थे,उस समय इस शरीर की क्या अवस्था थी और आज जब देखते हैं तो इसकी कैसी अवस्था है। ये संसार,ये शरीर पूर्व में जैसा था आज वैसा नहीं है और आज जैसा है,भविष्य में ऐसा नहीं रहेगा।यह निरंतर बदलने वाला है,बदल रहा है।लेकिन जो कभी नहीं बदलता सदा एकरूप बना रहता है वह केवल भगवद तत्व है,परमात्म तत्व है। हमारे प्रभु सीताराम जी निरंतर रहने वाले हैं और यह संसार  छूटनेवाला है। इसलिए हमें चाहिए कि हम दृढ़ता से यह मान लें कि प्रभु हमारे हैं और हम प्रभु के हैं।जैसे छोटा सा बालक कहता है कि मां मेरी है।कोई उससे पूछे कि बता मां तेरी क्यों है।तो इसका उत्तर उसके पास नहीं है।उसके मन में कोई शंका,कोई संदेह नहीं हैं। मां उसकी है, बस।फिर चाहे आप कुछ भी कहें, उसके लिए आपकी कोई बात महत्व ...

बाईं करवट लेटें क्यों ?



शतपावली  के सामान  ही भोजन के बाद  बाईं करवट  लेटना  भी आवश्यक  है l इसे  वामकुक्षी भी कहते हैं l इसका अनन्य  लाभ  मिलता  है l इस सम्बन्ध  में शास्त्र कहता  है की भोजन करने के बाद बाईं तरफ   मुंह करके  कुछ देर तक  लेटे रहें  l

इसके  पीछे  तीन  कारण हैं -  पहला  , अन्न  का कुछ देर जठर  में ही रहना  शरीर के लिए पथ्यकारक होता है l जठर के आकुंचन  -  प्रसारण  के कारण अन्न तरल  होकर  अगले  मार्ग  में प्रविष्ट  होता है l इससे  पाचन  अच्छी तरह  होता है l दूसरा  कारण है -  जठर के अगले हिस्से  में पूरा  अन्न जाने पर उसकी बाईं  ओर स्थित  आकुंचन -  प्रसारण वाली  जगह  पर अन्न का दबाव पड़ता  है l  दाईं ओर सोने  से यह दबाव नहीं आता l तीसरा  कारण है -  बाईं नासिका से सूर्य  नाड़ी 'पिंगला '  एवं दाईं नासिका से चंद्र  नाड़ी 'इड़ा ' बहती  रहती  है l दाईं ओर सोने से पिंगला एवं बाईं ओर सोने से इड़ा प्रवाहित  रहती है l अन्न पाचन के लिए पिंगला का स्वर  अत्यंत  आवश्यक  होता है l इसलिए भोजन के बाद बाईं ओर कम से कम एक घंटा  24 मिनट  तक सोएं l

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