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Showing posts from August, 2018

हमारे तो एक प्रभु हैं...

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  बड़े भाग मानुष तन पावा। मनुष्य शरीर बड़े भाग्य से मिलता है,भगवान की कृपा से मिलता है।इसलिए यह शरीर भगवान के लिए है।उनको प्राप्त करने के लिए है। वास्तव में एक मेरे प्रभु श्री सीताराम जी के अलावा और किसी की सत्ता है ही नहीं।आप विचार करके देखें,ये शरीर,ये संसार मिटनेवाला है,निरंतर मिट रहा है। जब हम मां के पेट से पैदा हुए थे,उस समय इस शरीर की क्या अवस्था थी और आज जब देखते हैं तो इसकी कैसी अवस्था है। ये संसार,ये शरीर पूर्व में जैसा था आज वैसा नहीं है और आज जैसा है,भविष्य में ऐसा नहीं रहेगा।यह निरंतर बदलने वाला है,बदल रहा है।लेकिन जो कभी नहीं बदलता सदा एकरूप बना रहता है वह केवल भगवद तत्व है,परमात्म तत्व है। हमारे प्रभु सीताराम जी निरंतर रहने वाले हैं और यह संसार  छूटनेवाला है। इसलिए हमें चाहिए कि हम दृढ़ता से यह मान लें कि प्रभु हमारे हैं और हम प्रभु के हैं।जैसे छोटा सा बालक कहता है कि मां मेरी है।कोई उससे पूछे कि बता मां तेरी क्यों है।तो इसका उत्तर उसके पास नहीं है।उसके मन में कोई शंका,कोई संदेह नहीं हैं। मां उसकी है, बस।फिर चाहे आप कुछ भी कहें, उसके लिए आपकी कोई बात महत्व ...

आत्महत्या

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आज मन बड़ा उदास था l उदास मन का कारण मेरी असफलता  ही थी  और कुछ नहीं , दोष  भी मैं किसे दूँ  , जीवन तो नदी की तरह है  जिसे बहना  है , बस बहना  है , यदि नदी का पानी कहीं  रुक जाये तो सड जाता है , उसी तरह जीवन नदी का पानी भी यदि कहीं रुक जाये तो उसमें  असफलता की काई  लगते  देर नहीं लगती l  क्या करूँ  क्या न करूँ अब मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा  , सामने यदि कुछ नज़र  आता है ,तो बस असफलता का घोर अंधकार , आखिर  मैं अब क्या करूँ , अब तो बस एक ही विकल्प  मुझे दिखाई  पड़ता है , की मैं शांत हो जाऊं ,खो जाऊं इस अनंत  ब्रमांड  की शांति मे , ऐसे अनेको तर्क करने के बाद , मैं स्वयं  को शून्य  में विलीन करने चल पड़ा l  सामने कल -कल करती हुयी नदी थी , मैंने  उस नदी से कहा , रे नदी मुझे तू स्वयं  में समाहित करले , ले चल मुझे वहां जहाँ सब कुछ शांत हो l मैं नदी में कूदने  ही जा रहा था की अचानक  से आवाज़ आई  , रुक जाओ  l  मैं अचंभित होकर स...

अशांति मे शांति कैसे ?

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मन्दाकिनी तट राम घाट पर प्रगटे दशरथ नंदन l   बोले मधुर बानी में धनुधर बाबा दे दो चन्दन l  तुलसीदासजी चित्रकूट में , मन्दाकिनी तट के किनारे ,राम घाट पर प्रभु के दर्शन की लालसा लिए बैठे हैं , उनके आँखों से प्रेमाश्रु बरस रहे हैं l आज बाबा का मन बड़ा अशांत है , कारण उस अशांत मन को शांत करने वाले रघुवर  उन्हें नहीं मिल रहे l मित्रों ऐसी अशांति जीवन में किसे  नहीं चाहिए , काश हमारे भीतर भी प्रभु के लिए ऐसा प्रेम , ऐसी व्याकुलता  होती जिसके कारन हमारा मन भी अशांत होता l ऐसी अशांति भी परम सुख प्रदान करने वाली  है , आनंद को भी आनंद प्रदान करने वाली है l   बाबा के मन में  प्रभु के दर्शन को लेकर जो अशांति है ,उस अशांति को दूर करने के लिए आज मेरे रघुवर  प्रगटे हैं l प्रभु बाबा को  हृदय  से लगा कर , उनकी अशांति को दूर कर रहें हैं l  भाइयों हमारा मन भी अशांत है ,  घर के लिए , गाड़ी के लिए , जमीन के लिए , और इसी अशांति के कारण ही हम घोर दुःख के भागीदार बने बैठे हैं , काम , क्रोध , मोह , द्वेष जैसे अनेको...

दो पुडिया

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एक व्यक्ति अपने 'पेट'  के दर्द और आँखों के जलन  से बड़ा दुखी था l वह चिकित्सक के पास  पहुँचा उसने अपनी सारी व्यथा उन्हें सुनाई l चिकित्सक ने कहा की चिंता मत करो तुम ठीक हो जाओगे  l  चिकित्सक ने अपनी जाँच पड़ताल की  और कहा की ये लो इस पुड़िया में 'अंजन'  है ,इसे  सोते समय अपने आँखों में लगा लेना इससे आँखों की  जलन दूर हो जाएगी और यह दूसरी  पुड़िया लो इसमें 'चूर्ण'(powder) है ,इसे गरम पानी के साथ ले लेना तुम्हारा पेट भी  बिलकुल  ठीक हो जायेगा l चिकित्सक  को प्रणाम कर वह व्यक्ति घर आ जाता है l चूर्ण को वह अंजन समझ कर आँखों में लगा लेता है और अंजन को चूर्ण समझ कर वह गरम पानी के साथ उसे  ले लेता है l अब बताईये इसमें किसकी गलती है ,चिकित्सक की यह उस व्यक्ति के मूर्खता की l मित्रों विचार कीजिये परमात्मा ने भी हमे दो पुड़िया प्रदान की है , एक 'दिल'  रूपी पुड़िया और दूसरी 'दिमाग'  रूपी पुड़िया l परमात्मा ने जब हमे इस संसार  में भेजा  तो यह सूचित किया था , की तू दिल मुझ में लगाना और दिम...

निराकार और साकार

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सभी के मन में यह प्रश्न  उठता  है ,की प्रभु निराकार हैं या साकार ,यदि वे निराकार हैं ,तो उन्हें साकार होने  की आवश्यकता क्यों पड़ी ? आइए हम इस प्रश्न का उत्तर जानने का प्रयास  करें l   मित्रों जल क्या है ,निराकार है या साकार ? उत्तर -  जल निराकार है l इसी निराकार जल को जब हम कटोरी  में भर कर फ्रिज में रख देतें हैं ,तो वह बर्फ  का आकर ले लेता  है , अच्छा जल को बर्फ का रूप देने के लिए हमने पानी में ऊपर  से कुछ मिलाया तो नहीं ,बस पानी को कटोरी में भर कर फ्रिज में रखा दिया l ठीक इसी प्रकार जब हम सर्वव्यापी निराकार परमात्मा को निष्ठा की कटोरी में भर कर ,भक्ति भाव  रूपी फ्रिज  में रख देतें हैं ,तो कुछ समय के बाद जो परमात्मा निराकार थे वे ही साकार रूप ले लेतें  हैं l तुलसीदास जी कहतें  हैं .... जो गुण रहित सगुन सोइ कैसें  l  जलु  हिम उपल  बिलग नहीं  जैसें जैसे जल और बर्फ दिखते अलग  हैं , किन्तु हैं एक ही , उसी प्रकार निराकार और साकार भी दिखते अलग हैं ,किन्त...

आज़ादी

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आज़ादी के इस पावन पर्व को आज समुच्य राष्ट्र बड़े ही आनंद से मना रहा है , और मनाना भी चहिये किन्तु तनिक विचार करने की भी आवश्यकता है l आज़ादी के इतने वर्ष बाद भी माँ भारती के गोद में खेलने वाले न जाने कितने बच्चे अशिक्षा के अंधकार में अपना जीवन व्यतीत कर रहें हैं , आज भी राष्ट्र में जगह -जगह सांप्रदायिक दंगे हो रहें हैं , गरीबी की गर्मी न जाने किनते ही लोगों को जला रही है , पर्यावरण अपनी सुंदरता को दिन पे दिन खोता ही जा रहा है , जिस धर्म के सहारे मनुष्य भवसागर से पार होता है ,उसी धर्म का इस्तेमाल आज लोग अधर्म फैलाने के लिए कर रहें हैं l सत्य तो यही है ,की आज़ाद हो कर भी 'पँछी' आज़ाद नहीं क्यों की उसके पँखो में आज भी अशिक्षा ,सांप्रदायिक दंगे ,गरीबी ,अधर्म के घाव हैं ,जो उसे उडान नहीं भरने दे रहे l  मित्रों जिस प्रकार माला बनाने के लिए सभी मोतियों का जुड़ना आवश्यक होता है ,उसी प्रकार राष्ट्र की चेतना भी तभी जागेगी , जब राष्ट्र का हर एक व्यक्ति मिल कर 1 से 108 बने गा l आओ  हम सब मिल कर आज यह प्रण करें की हम सब इस राष्ट्र को उसके उच्चतम शिखर  तक ले जायेंगे  और...

जीवन का उद्देश्य क्या है ?

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 बैठे￰-बैठे बस विचार कर रहा हूँ ,की आखिर मेरे जीवन का उद्देश्य  क्या है ?एक' पुष्प ' भी यदि बाग में खिलता  है तो उसका भी कोई  उद्देश्य होता है ,उसी उद्देश्य के चलते  ही वो पुरे  बागीचे  को अपनी सुगंध  से सुगन्धित कर देता  है , पुष्प के भीतर सुगंध  है ,तभी  तो वो पुरे बागीचे को सुगन्धित  कर पाता  है ,यदि उसमे 'स्वयं' मे ही सुगन्धता  न होती तो वह बस खिलता और मुर्झा जाता उसके जीवन का कोई  अर्थ ना होता  , क्यों की सत्य  तो यही है की बाहर सुगंध फैलाने  से पूर्व  भीतर सुगंध को  फैलाना होता है l आज ये कहने  की आवश्यकता  है की धन्य  है 'पुष्प'  का जीवन जिसने  पहले स्वयं को सुगन्धित किया और बाद में पुरे बागीचे को, काश हम भी 'पुष्प '  के  भाँति ही स्वयं के भीतर ऐसी सुगंध को जन्म दे पाते जिससे हम और हमारे साथ सभी सुगन्धित हो जाते l मेरे जीवन का भी उद्देश्य बड़ा है ,इस बात को मैं समझ गया हूँ ,फिर क्यों बार -बार मैं भटक जाता हूँ ,क्यों मै...

खोजो￰ मत

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हम ध्यान  करते हैं ,हम जाप  करते हैं ,हम अनेको  साधन  करते है प्रभु को प्राप्त  करने के लिए किन्तु इतने  साधन  करने के  बाद  भी हम प्रभु को देखने  मे स्वयं  को  असमर्थ ही पाते है l आखिर हमे भगवान् के दर्शन  क्यों नहीं  होते  ,वे क्यों प्रत्यक्ष  रूप  मे हमे दर्शन नहीं  देते , हम उन्हें  हर जगह  खोजते है ,फिर वे क्यों नहीं हमे मिलते  l एक सज्जन  ने कहा की हमने भगवान् को बहुत खोजा किन्तु वे हमे मिले नहीं इसलिए हमने मान  लिया  की भगवान् होते ही नहीं हैं  ,जब होंगे  तब  तो मिलेंगे , हमने बहुत पूजा किया पाठ किया परन्तु  कुछ हुआ ही नहीं l अच्छा विचार कीजिये  की हम खोज क्यों करते हैं , कुछ पाने  के लिए ना  , अर्थात जो चीज़  हमारे  पास  न हो उस चीज़ को पाने के लिए हम खोज करते हैं l जो चीज़ उपलब्ध  ही न हो उस चीज़ को खोजना  तो ठीक है किन्तु जो चीज़ पहले से ही उपलब्ध हो उसको  कोई खोजता...

'आलू ' से दिव्य ज्ञान

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प्राय हम सब भोजन करते है , जब हम माँ से पूँछते हैं की माँ आज भोजन में क्या बनाया है ,मान लीजिये माँ ने आलू बनाया है ,तो माँ कहती है ,की बेटा आज  आलू बनाया है l अब आप ये बताओ की माँ ने आलू बनाया है ,या आलू का साग बनाया है l सत्य तो यह  है की माँ ने आलू नहीं आलू का साग बनाया है ,आलू तो बनाने  वाले  ने ही बनाया है l अच्छा अगर आलू बनाने वाले ने आलू न बनाया होता तो हम साग किस का बनाते और एक  बात ,  आलू पहले  बना की साग ,आलू पहले बना ,साग बाद में  बना ,तो साग बनाने वाले की महिमा  तो है ,लेकिन  आलू बनाने वाला  भी तो होगा  उसने यदि   आलू ही न बनाया होता तो साग बनाने वाले ने क्या बनाया होता l हमे तो लगता है की आज तक  किसी गुरु ने ऐसा चेला  नहीं बनाया होगा जिसे पहले  भगवान् ने न बनाया हो l तो जीवन पहले मिला ,जन्म  पहले मिला ,उसी तरह भगवान् ने पहले बनाया आलू ,इसलिए उनको  प्रणाम  l परन्तु गुरुदेव की महिमा भगवान् से भी अधिक क्यों l सत्य तो यही है की आलू बनाने वाले से सा...

गुरु की क्या आवश्यक्ता है ?

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जब भगवान् मिल ही गए हैं ,या मिले ही हुए हैं ,तो गुरुदेव की आवश्यक्ता क्या है ? ' खोया होय तो फिर मिले , रूठा लेहिं  मनाय l पर मिला रहे फिर ना मिले , तासो कौन बसाय l '  कोई  वस्तु खो गयी  हो  तो  खोजने से  मिल जाएगी ,और कोई रूठ  गया  हो तो  मना लेंगें , किन्तु  जो मिला  रहने  के  बाद  भी न  मिल  रहा  हो अर्थात  जो मिल कर  भी अनमिला  हो उससे  मिलाने  का  काम  गुरुदेव  का है l तुलसीदास जी  से किसी ने पूँछा की बाबा  हनुमान  जी आप  के गुरुदेव क्यों  हैं ,क्या  उन्होंने आप को  रामजी  से मिलाया l तुलसीदास जी बोले  की रामजी तो मिल गए  थे  ,तो उस  व्यक्ति  ने कहा बाबा तो हनुमान जी ने क्या किया ,तुलसीदास जी बोले की मिले हुए रामजी को हम पहचान  नहीं पा रहे  थे ,हनुमान जी ने हमे  बताया l मन्दाकिनी तट  राम  घाट  पर  , प्रगटे  दशरथ नंद...

भार और आधार

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प्रभु श्री रामजी ,सीताजी और लक्ष्मणजी के अयोध्या से जाने के बाद पूरी अयोध्या दुःख के सागर में डूब चुकी थी l भरत जी अयोध्या आए , सब देख वे बहुत दुखी हुए और सोचने लगे की कितना बड़ा अनर्थ होगया ,अब क्या किया जाये जिससे इस दुःख में डूबी अयोध्या को कोई सहारा मिल जाये ,क्या उपाय है ?तब उन्हें एक ही उपाय मिला ' प्रभु करि कृपा पाँवरी दीन्हि ' l भगवान् ने कृपा करके भरत जी को पादुका दी ,अच्छा यह पादुका भी बड़ी अद्भुत है l भरत जी को जब भगवान् से पादुका मिली तो वे पादुका को अपने सिर पर रख लेतें हैं l भगवान् ने कहा भरत तुमने तो 'आधार ' माँगा था ,हमने तुम्हारे सिर पर 'भार' डाल दिया l भरत जी ने कहा की प्रभु यह भी आधार ही है ,तो रामजी ने कहा भरत  क्या आधार  सिर पर  रखा  जाता है ,भरत जी बोले हाँ , रामजी ने कहा कब ,तो भरत जी ने कहा की प्रभु जब सिर पर भार ज्यादा  आजाए तो आधार सिर पर ही रखना पड़ता है l अच्छा आप ने देखा होगा की रेलवे स्टेशन पे हमारे कुली भाई ,सिर पर सामान रखते  हैं ,तो सामान और सिर के बीच में उनकी  पगड़ी  का आधार होता है l माताएं ज...

3 आए और 3 गए

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अयोध्या  में मंथरा के माध्यम से माता कैकयी  को क्रोध आया , उस क्रोध के चलते दशरथ जी  को विवश  होकर रामजी को वनवास भेजना  पड़ा l अच्छा देखो तीन ही आये और तीन ही गए , कहो  कैसे ? मंथरा के रूप में लोभ आया , दशरथ जी के रूप में काम आया और कैकयी जी के रूप में क्रोध आया ,और तीन ही वन गए ,श्री सीताजी  ,रामजी ,लक्षमण जी l काम आया तो रामजी वन को चले गए ,क्यों की  'जहाँ काम तहाँ राम नहीं ,जहाँ राम नहीं काम '  और क्रोध आया तो शांति स्वरूपिणी   माता सीता  वन को चलीं गयीं  l कभी आप ने ऐसा नहीं सुना होगा की जब हमे क्रोध आता है तो बड़ी शांति मिलती  है , शांति चली जाती है l क्रोध आने पे शांति (सीताजी ) चली गयी ,काम आने पर श्री रामजी वन को चले गए और लोभ आने पर त्याग के मूर्तिमान  स्वरुप लक्ष्मण जी वन को चले गए l पूरी अयोध्या शोक में डूब गयी  l मित्रों काम ,क्रोध और लोभ जहाँ भी होंगे वहाँ प्रभु श्री रामजी ,सीताजी और लक्ष्मण जी नहीं अपितु  दुःख ही होगा जैसे अयोध्या में हुआ प्रभु के जाने के बाद l इसलिए हम...