हमारे तो एक प्रभु हैं...

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  बड़े भाग मानुष तन पावा। मनुष्य शरीर बड़े भाग्य से मिलता है,भगवान की कृपा से मिलता है।इसलिए यह शरीर भगवान के लिए है।उनको प्राप्त करने के लिए है। वास्तव में एक मेरे प्रभु श्री सीताराम जी के अलावा और किसी की सत्ता है ही नहीं।आप विचार करके देखें,ये शरीर,ये संसार मिटनेवाला है,निरंतर मिट रहा है। जब हम मां के पेट से पैदा हुए थे,उस समय इस शरीर की क्या अवस्था थी और आज जब देखते हैं तो इसकी कैसी अवस्था है। ये संसार,ये शरीर पूर्व में जैसा था आज वैसा नहीं है और आज जैसा है,भविष्य में ऐसा नहीं रहेगा।यह निरंतर बदलने वाला है,बदल रहा है।लेकिन जो कभी नहीं बदलता सदा एकरूप बना रहता है वह केवल भगवद तत्व है,परमात्म तत्व है। हमारे प्रभु सीताराम जी निरंतर रहने वाले हैं और यह संसार  छूटनेवाला है। इसलिए हमें चाहिए कि हम दृढ़ता से यह मान लें कि प्रभु हमारे हैं और हम प्रभु के हैं।जैसे छोटा सा बालक कहता है कि मां मेरी है।कोई उससे पूछे कि बता मां तेरी क्यों है।तो इसका उत्तर उसके पास नहीं है।उसके मन में कोई शंका,कोई संदेह नहीं हैं। मां उसकी है, बस।फिर चाहे आप कुछ भी कहें, उसके लिए आपकी कोई बात महत्व ...

खोजो￰ मत









हम ध्यान  करते हैं ,हम जाप  करते हैं ,हम अनेको  साधन  करते है प्रभु को प्राप्त  करने के लिए किन्तु इतने  साधन  करने के  बाद  भी हम प्रभु को देखने  मे स्वयं  को  असमर्थ ही पाते है l आखिर हमे भगवान् के दर्शन  क्यों नहीं  होते  ,वे क्यों प्रत्यक्ष  रूप  मे हमे दर्शन नहीं  देते , हम उन्हें  हर जगह  खोजते है ,फिर वे क्यों नहीं हमे मिलते  l एक सज्जन  ने कहा की हमने भगवान् को बहुत खोजा किन्तु वे हमे मिले नहीं इसलिए हमने मान  लिया  की भगवान् होते ही नहीं हैं  ,जब होंगे  तब  तो मिलेंगे , हमने बहुत पूजा किया पाठ किया परन्तु  कुछ हुआ ही नहीं l
अच्छा विचार कीजिये  की हम खोज क्यों करते हैं , कुछ पाने  के लिए ना  , अर्थात जो चीज़  हमारे  पास  न हो उस चीज़ को पाने के लिए हम खोज करते हैं l जो चीज़ उपलब्ध  ही न हो उस चीज़ को खोजना  तो ठीक है किन्तु जो चीज़ पहले से ही उपलब्ध हो उसको  कोई खोजता  है क्या ? , ईश्वर हैं इस  बात  को मानो ,ईश्वर को खोजो  मत ईश्वर को हम मान्यता  से ही प्राप्त कर सकते  हैं l जैसे यह मुंबई  शहर है ,तो आप मान लेते हैं की यह मुंबई शहर  है , यदि आप मानना चाहो तो आप के लिए ये शहर मुंबई है और न मानना चाहो तो नहीं है , बहुत ही सरल है  ,  तो बस मान लीजिये की भगवान् हैं , उनको ढूंढना  बंद  कीजिये l  किसी ने कहा की चलो  मान लिया की भगवान् हैं ,लेकिन उन्हें देखें कैसे  ? अच्छा मान लीजिये किसी  मकान मे दस कमरे हैं और आप का   मित्र किसी एक कमरे  में  ठहरा हुआ है ,आप को पता  नहीं वह कमरा  कोनसा है  जिसमे आप  का मित्र ठहरा हुआ है  ,तो आप क्या करेंगे क्या आप हर दरवाज़ा  खट खटाएंगे l सब से सरल  तरीका  तो यह होगा की आप  बाहर ही खड़े होकर जोर  से अपने  मित्र को उसके नाम से पुकारें  ,आप जिसका  भी नाम लेंगे  वो कमरे के बाहर स्वतः  ही आजाऐगा l


इसी तरह मित्रों भगवान् हैं ,इस बात को बस मान लीजिये  l अब कहाँ  हैं ? कोनसे  से कमरे में हैं ? ज्ञान के कमरे मे हैं ,या वैराग्य  के कमरे मे हैं ,या भक्ति के कमरे मे हैं ,बस नाम लेकर  पुकारिये  वे आजाएंगे l प्रभु कहते हैं की ...
निर्मल  मन जन सो  मोहि  पावा  l  मोहि कपट  छल छिद्र  न भावा l


इसलिए कपट छोड़ कर निर्मल मन से प्रभु का नाम  भजिये वे  अवश्य आएंगे l
--------------जय श्री सीताराम ---------------
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