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Showing posts from October, 2018

हमारे तो एक प्रभु हैं...

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  बड़े भाग मानुष तन पावा। मनुष्य शरीर बड़े भाग्य से मिलता है,भगवान की कृपा से मिलता है।इसलिए यह शरीर भगवान के लिए है।उनको प्राप्त करने के लिए है। वास्तव में एक मेरे प्रभु श्री सीताराम जी के अलावा और किसी की सत्ता है ही नहीं।आप विचार करके देखें,ये शरीर,ये संसार मिटनेवाला है,निरंतर मिट रहा है। जब हम मां के पेट से पैदा हुए थे,उस समय इस शरीर की क्या अवस्था थी और आज जब देखते हैं तो इसकी कैसी अवस्था है। ये संसार,ये शरीर पूर्व में जैसा था आज वैसा नहीं है और आज जैसा है,भविष्य में ऐसा नहीं रहेगा।यह निरंतर बदलने वाला है,बदल रहा है।लेकिन जो कभी नहीं बदलता सदा एकरूप बना रहता है वह केवल भगवद तत्व है,परमात्म तत्व है। हमारे प्रभु सीताराम जी निरंतर रहने वाले हैं और यह संसार  छूटनेवाला है। इसलिए हमें चाहिए कि हम दृढ़ता से यह मान लें कि प्रभु हमारे हैं और हम प्रभु के हैं।जैसे छोटा सा बालक कहता है कि मां मेरी है।कोई उससे पूछे कि बता मां तेरी क्यों है।तो इसका उत्तर उसके पास नहीं है।उसके मन में कोई शंका,कोई संदेह नहीं हैं। मां उसकी है, बस।फिर चाहे आप कुछ भी कहें, उसके लिए आपकी कोई बात महत्व ...

' विश्वास ' एक जादुई शब्द

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विश्वास क्या है ? अगर इस शब्द की महिमा को हम समझ जाएँ तो जीवन में जो परिवर्तन होगा , वो आश्चर्य  जनक  होगा l  विश्वास मात्र एक शब्द नहीं है , इसमें जीवन का वो अमृत रस छुपा  है , जिसके पान से मनुष्य इस भवसागर से पार हो सकता है , अपने बड़े से बड़े लक्ष्य को भी  आसानी  से प्राप्त कर सकता है l अगर हम ध्यान दें तो हमे पता चलेगा की ये शब्द '  विश्वास '  दो शब्दों का अद्भुत मिश्रण है और वो शब्द हैं   '  विष '  और ' श्वास ' अर्थात जो  विष को भी श्वास प्रदान कर दे उसे कहते हैं , विश्वास l  आप ऐसे समझिये , कोई व्यक्ति वीराने में दौड़ लगा रहा हो , दौड़ते -  दौड़ते वह गिर जाये ,पास  कोई  न हो उसकी सहायता के लिए , अब वह सोचे की मैं घर कैसे जाऊं , मुझे कौन सहारा देगा और उसी समय उसे दो डंडा मिल जाये जिसके सहारे से उठ कर वह  चल सके और घर तक पहुँच सके , तो उस व्यक्ति के लिए विश्वास वह डंडा  है , जिसने उस चोट खाये व्यक्ति को उसके घर तक पहुँचा दिया l  यही विश्वास है l  संसार में कुछ भी पा...

￰रूपान्तरण

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मनुष्य शरीर में असीम शक्तियां विद्यमान हैं , जिसके तनिक उपयोग से ही मनुष्य अपने सभी क्रिया  -  कलाप करता है l  इस अपार शक्ति भंडार को समझने की आवश्यकता है l वास्तव में मनुष्य शरीर के भीतर जो विकार हैं , जैसे आलस , काम , क्रोध यह सब विकार तो हैं किन्तु बेकार नहीं , यही वो अद्भुत शक्तियां है जो हमे हमारे लक्ष्य तक पहुँचा सकती है , केवल हमे इनका रूपांतरण करना है, फिर यही विकार हमारे लिए प्रसाद  बन जायेंगे l हम अपनी ऊर्जा  इन्ही विकारों  के माध्यम से व्यर्थ ही खर्च कर देते हैं , यदि हम ये समझ जाएँ की यह विकार तो हैं किन्तु बेकार नहीं , तो हम इन विकारों की शक्तियों को रूपांतरित  कर अपने लक्ष्य तक अवश्य पहुँच सकते हैं l विचार करिये ,की यदि ये विकार बेकार होते , तो परमात्मा हमे ये विकार देते ही क्यों l  आटे की रोटी बनती है , रोटी से पेट भरता है , घर चलता है , लेकिन आटे से पेट नहीं भरता l  अब कोई आटा कनस्तर भरे धरे रहे और भूखा हो , भूख लगे आटा   फाँक ले , फाँक ते ही उगल दे , फिर फाँकाए फिर उगल दे , सोचे ये क...