जे गुरु चरण रेनु सिर धरहीं l ते जनु सकल बिभव बस करहीं ll
मोहि सम यहु अनुभयउ न दूजें l सबु पायउँ रज पावनि पूजें ll
भगवान् राम के पिता दशरथ जी अपने गुरुदेव वशिष्ठ जी से कहते हैं , जो लोग गुरुदेव के चरणकमलों की रज को अपने मस्तकपर धारण करते हैं , वे लोग समस्त ऐश्वर्यों को अपने वश में कर लेते हैं , आगे दशरथ जी कहते हैं कि गुरुेदेव मेरे समान इसका अनुभव किसी ने नहीं किया , आपके चरण रज की पूजा करके मैने सब कुछ पा लिया l
मंगल के मूल रामजी जिनके पुत्र हों उनके लिए जो कुछ भी कहा जाये सब थोड़ा है l
" मंगल मूल रामु सुत जासू l जो कछु कहिअ थोर सबु तासू ll "
सत्य है , तीनो भुवनों में ( पृथ्वी , आकाश , पाताल ) और तीनो कालों ( भूत , भविष्य , वर्तमान ) में दशरथ जी के समान कोई बड़भागी नहीं है
" तिभुवन तीनि काल जग माहीं l भूरिभाग दशरथ सम नहीं ll "
पुत्र के रूप में रामजी को पा कर दशरथ जी धन्य हो गए , मानो रिद्धि - सिद्धि और सम्पति रूपी सुहावनी नदियाँ आज उमड़ - उमड़ कर अयोध्या रूपी समुद्र में आकर मिल गयी हों , " रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई l उमगि अवध अंबुधि कहुँ आई ll
सभी मातायें और सखी , सहेली आज अपार आनंद की अनुभूति कर रही हैं , मानो उनकी मनोरथ रूपी बेल आज फलित हो गयी हो l " मुदित मातु सब सखी सहेली l फलित बिलोकि मनोरथ बेली ll "
लेकिन यह जो ब्रह्मा आनंद है , जिसका अनुभव आज सभी कर पा रहें हैं , वह आनंद आया कहाँ से , किसकी कृपा से आज अयोध्या फूले नहीं समा रहा , दशरथ जी कहते हैं कि हे गुरुदेव यह सब आप की ही कृपा है , यदि आपने कृपा न की होती तो आज अयोध्या को राम के रूप में साक्षात् भगवान् न मिलते , प्रभु मुझे तो रामजी को देख कर यह लगता है कि आप का आशीर्वाद ही मानो शरीर धारण कर रामजी के रूप में सामने खड़ा हो , " प्रभु असीस जनु तनु धरि सोही ll " धन्य हैं , गुरुदेव आप , धन्य हैं l
गुरु की महिमा अपार है , यदि वे न हों तो ज्ञान का होना भी कठिन है और यदि ज्ञान न हो तो मनुष्य जीवन भी पशुवों के समान ही होगा उसमे कुछ खासा अंतर् न होगा, इसलिए शास्त्रों ने खुब गुरु महिमा का बखान किया है उसका कारण यही है की गुरुदेव के चरण कमलों की रज से मनुष्य अपने मन के मैले दर्पण को साफ कर सकता है , निर्मल कर सकता है " श्री गुरु चरण सरोज रज , निज मनु मुकुरु सुधारि l
मित्रों निर्मल मन ही ज्ञान का घर है , कलुषित मन में ज्ञान की उत्पत्ति नहीं हो सकती , इसलिए गुरुदेव के चरणों का आश्रय लें वे आप के कलुषित मन के दर्पण को पुनः निर्मल करदेंगे और तब आप अपने लक्ष्य तक पहुँच जायेंगे l
----------------------- जय श्री सीताराम -----------------------
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