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Showing posts from September, 2019

हमारे तो एक प्रभु हैं...

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  बड़े भाग मानुष तन पावा। मनुष्य शरीर बड़े भाग्य से मिलता है,भगवान की कृपा से मिलता है।इसलिए यह शरीर भगवान के लिए है।उनको प्राप्त करने के लिए है। वास्तव में एक मेरे प्रभु श्री सीताराम जी के अलावा और किसी की सत्ता है ही नहीं।आप विचार करके देखें,ये शरीर,ये संसार मिटनेवाला है,निरंतर मिट रहा है। जब हम मां के पेट से पैदा हुए थे,उस समय इस शरीर की क्या अवस्था थी और आज जब देखते हैं तो इसकी कैसी अवस्था है। ये संसार,ये शरीर पूर्व में जैसा था आज वैसा नहीं है और आज जैसा है,भविष्य में ऐसा नहीं रहेगा।यह निरंतर बदलने वाला है,बदल रहा है।लेकिन जो कभी नहीं बदलता सदा एकरूप बना रहता है वह केवल भगवद तत्व है,परमात्म तत्व है। हमारे प्रभु सीताराम जी निरंतर रहने वाले हैं और यह संसार  छूटनेवाला है। इसलिए हमें चाहिए कि हम दृढ़ता से यह मान लें कि प्रभु हमारे हैं और हम प्रभु के हैं।जैसे छोटा सा बालक कहता है कि मां मेरी है।कोई उससे पूछे कि बता मां तेरी क्यों है।तो इसका उत्तर उसके पास नहीं है।उसके मन में कोई शंका,कोई संदेह नहीं हैं। मां उसकी है, बस।फिर चाहे आप कुछ भी कहें, उसके लिए आपकी कोई बात महत्व ...

छोटे बालक को पाप नहीं लगता

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                         (1)     छोटे बालकों  से प्रायश्चित्त न कराया जाय धर्मराज यमराज प्राश्चित्त के विषय में एक विशेष परामर्श देते हुए कहते हैं कि पाँच वर्ष से दस वर्ष की अवस्थावाले बालक से यदि कोई पाप कर्म बन गया हो तो यद्यपि वह सामान्य नियम से दण्ड का अधिकारी और प्रायश्चित्त करने के लिए बाध्य है , किन्तु विशेष नियम यह है कि ऐसे बालक से प्रायश्चित्त कर्म न कराया जाय , बल्कि उस पाप कर्म का प्रायश्चित्त उसका भाई , पिता अथवा अन्य कोई भी बन्धु - बान्धव कर दे तो इससे उस बालक की शुद्धि हो जाती है l                 (2)    छोटे बालक को पाप नहीं लगता      अतो  बलातरस्यापि  नापराधो न पातकं  l    राजदण्डो न तस्यास्ति  प्रायश्चित्तं न विद्यते   l l   (  यमस्मृति . 13 ) यदि पाँच वर्ष ...

प्रातः स्नान क्यों ?

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प्रातः स्नानेन पूयन्ते सर्वपापान्न संशय: l  न हि स्नानं विना पुंसां प्राशस्त्यं कर्मसु स्मृतम l l   (  लघुव्यास -  1/7 ) शौच आदि के अनन्तर शुद्ध जल से स्नान करना चाहिए l प्रातः स्नान से पापों का विनाश होता है l प्रातः काल स्नान करने के पश्चात ही मनुष्य शुद्ध होकर जप -पूजा -पाठ आदि समस्त कर्मों को करने का अधिकारी होता है क्योंकि बिना स्नान के ये कर्म नहीं किये जाते l नौ छिद्रोंवाले इस अत्यंत मलिन शरीर से दिन-रात मल निकलता रहता है , अतः प्रातः काल स्नान करने से शरीर की शुद्धि होती है l रात में सुषुप्तावस्था में मुख से अपवित्र लार आदि पदार्थ निकलते हैं ,अतः बिना स्नान किये कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए l प्रातःकाल स्नान करने से अलक्ष्मी , दुर्भाग्य ,  दुःस्वप्न तथा बुरे विचारों के साथ ही सभी पापों का विनाश भी हो जाता है और बिना स्नान किये वह आगे के कार्यों के लिये प्रशस्त भी नहीं होता , इसीलिए प्रातः स्नान की विशेष महिमा है l  ------------------- जय श्री सीताराम ----------------- Plzz comment You can ask your quest...

' सत्य ' ही परम् धर्म है

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मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ हैं , धर्म , अर्थ  ,काम और मोक्ष l इन चारों पुरुषार्थों में 'धर्म ' को प्रधान माना गया है l धर्म मोक्ष का प्रधान साधन है l उत्थान तथा कल्याण का साधन धर्म ही है l अर्थ एवं काम की भी वास्तविक सिद्धि धर्म से ही होती है  किन्तु यह '  धर्म '  जिसपर टिका है , वह है '  सत्य '  l सत्य ही जीव की परम् गति है '  सत्यं हि परमा गतिः '   ( महाभा.शांति :  162/4) l  त्रिविध तप में  ' वाक् -  तप ' सत्य -भाषण को ही माना गया है l धर्म के चार चरणों में सत्य का स्थान सर्वोच्च माना गया है l भारतीय जीवन का प्राण सत्य था l स्वप्न के सत्य को भी जीवन में उतारनेवाले सत्यव्रत हरिश्चंद्र की कथा विश्व में सत्य के लिए राज्य , ऐश्वर्य ,प्रेममयी पत्नी , स्नेहमय पुत्र के त्याग की कथा के रूप में प्रख्यात है l सत्यवादियों की परम्परा में भगवान् श्री राम की सत्यनिष्ठा अप्रतिम थी l उनकी धारणा थी कि लोभ ,मोह , अज्ञान किसी भी प्रतिबन्ध से सत्य को नहीं छोड़ना चाहिए l शास्त्रों का कथन है कि देवता तथा पितर भी असत्यवादी का...

जंगल के जुगनू ( उपन्यास )