मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ हैं , धर्म , अर्थ ,काम और मोक्ष l इन चारों पुरुषार्थों में 'धर्म ' को प्रधान माना गया है l धर्म मोक्ष का प्रधान साधन है l उत्थान तथा कल्याण का साधन धर्म ही है l अर्थ एवं काम की भी वास्तविक सिद्धि धर्म से ही होती है किन्तु यह ' धर्म ' जिसपर टिका है , वह है ' सत्य ' l सत्य ही जीव की परम् गति है ' सत्यं हि परमा गतिः '
( महाभा.शांति : 162/4) l त्रिविध तप में ' वाक् - तप ' सत्य -भाषण को ही माना गया है l धर्म के चार चरणों में सत्य का स्थान सर्वोच्च माना गया है l भारतीय जीवन का प्राण सत्य था l स्वप्न के सत्य को भी जीवन में उतारनेवाले सत्यव्रत हरिश्चंद्र की कथा विश्व में सत्य के लिए राज्य , ऐश्वर्य ,प्रेममयी पत्नी , स्नेहमय पुत्र के त्याग की कथा के रूप में प्रख्यात है l सत्यवादियों की परम्परा में भगवान् श्री राम की सत्यनिष्ठा अप्रतिम थी l उनकी धारणा थी कि लोभ ,मोह , अज्ञान किसी भी प्रतिबन्ध से सत्य को नहीं छोड़ना चाहिए l शास्त्रों का कथन है कि देवता तथा पितर भी असत्यवादी का हव्य नहीं ग्रहण करते l सत्य - रक्षा के लिए ही रामजी ने अपने अंतिम क्षणों में काल को वचन देने के कारण अपने प्राण से भी प्रिय भाई लक्ष्मण को भी त्याग दिया था l इससे हमे यह पता चलता है कि श्री रामजी का जीवन सत्य के लिए ही समर्पित था l मात्र सत्य पालन - धर्मरक्षा के लिए ही उन्होंने जटा-चीर को धारण किया था तथा वनवास के असह्य दुखों को भोगा था l
प्राचीन काल में जब आचार्य गुरुकुल में विद्यार्थियों को शिक्षा दिया करते थे तब वे उन्हें सर्व प्रथम ' सत्यं वद ' सत्य पालन उसके उपरांत 'धर्मं चर ' धर्म पर चलने का उपदेश देते थे l इससे यहि सिद्ध होता है कि धर्म के मूल में भी यदि कुछ है , तो वह ' सत्य ' है l गीता में कहा गया है ' ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्य ' अर्थात ब्रह्म ही सत्य है बाकि सब मिथ्या है l इसलिए जहाँ सत्य होगा वहीं ब्रह्म होगा l सत्य ब्रह्म का निवास स्थान भी है l शंकर जी भी माता पार्वती से यहि कहते हैं कि हरी का भजन ही सत्य है शेष जगत मात्र स्वप्न है ' उमा कहउँ मैं अनुभव अपना l सत हरि भजन जगत सब सपना l ( मानस ) l भगवान् शिव कि वाणी से यह सिद्ध हो गया कि सत्य भाषण करना भगवान् का भजन करना ही है और वही सत्य है l सत्य ही सनातन धर्म है ' सत्यं धर्मः सनातनः ' , सत्य को ही सदा सिर झुकाना चाहिए ' सत्यमेव नमस्येत ' l सत्य ही धर्म , तप और योग है , सत्य ही सनातन ब्रह्म है , सत्य को ही परम् यज्ञ कहा गया है तथा सब कुछ सत्य पर ही टिका है ' सत्यं धर्मस्तपो योगः सत्यं ब्रह्म सनातनम l सत्यं यज्ञ: पर: प्रोक्तः सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितम l ' ( महाभा.शांति : 162/4-5)
वाल्मीकि रामायण का कथन है कि जगत में सत्य ही ईस्वर है , सदा सत्य के ही आधार पर धर्म की स्थिति रहती है l सत्य ही सबकी जड़ है l सत्य से बढ़ कर दूसरी कोई उत्तम गति नहीं है l दान , यज्ञ , होम , तपस्या और वेद - इन सब का आश्रय सत्य है , इसलिए सब को सत्य परायण होना चाहिये l ' सत्यमेवेश्वरो लोके सत्ये धर्मः सदाश्रितः l सत्यमूलानि सर्वाणि सत्यानास्ति परं पदम् l l दत्तमिष्टं हुतं चैव तप्तानि च तपांसि च l वेदा: सत्यप्रतिष्ठानास्तस्मात सत्यपरो भवेत् l l ( वा .रा.अयोध्या : 101/ 13-14 )
सत्य ही जीव की शाश्वत सम्पदा है l सत्य के समान दूसरा कोई परम् धर्म नहीं है
' सत्यानास्ति परो धर्मः ' l
मिथ्या भाषण को रोग , विष तथा भयंकर शत्रु माना गया है l असत्यवादी से कोई मित्रता नहीं करता l उसका पुण्य , यश , श्रेय सब नष्ट हो जाता है l जो पुण्यात्मा होते हैं वे असत्य को अविश्वास का मूल कारण , कुवासनाओं का निवास स्थान , विपत्ति का कारण , अपराध तथा वंचना का आधार मान कर उसे त्याग देते हैं l जिस प्रकार अग्नि वन को जला देता है , उसी प्रकार असत्य भाषण से यश नष्ट हो जाता है l
इस प्रकार हमारे भारतीय सद्ग्रंथों तथा शास्त्रों में ' सत्य ' को ही परम् धर्म सिद्ध किया गया है l
-------------------जय श्री सीताराम ---------------------
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