हमारे तो एक प्रभु हैं...

Image
  बड़े भाग मानुष तन पावा। मनुष्य शरीर बड़े भाग्य से मिलता है,भगवान की कृपा से मिलता है।इसलिए यह शरीर भगवान के लिए है।उनको प्राप्त करने के लिए है। वास्तव में एक मेरे प्रभु श्री सीताराम जी के अलावा और किसी की सत्ता है ही नहीं।आप विचार करके देखें,ये शरीर,ये संसार मिटनेवाला है,निरंतर मिट रहा है। जब हम मां के पेट से पैदा हुए थे,उस समय इस शरीर की क्या अवस्था थी और आज जब देखते हैं तो इसकी कैसी अवस्था है। ये संसार,ये शरीर पूर्व में जैसा था आज वैसा नहीं है और आज जैसा है,भविष्य में ऐसा नहीं रहेगा।यह निरंतर बदलने वाला है,बदल रहा है।लेकिन जो कभी नहीं बदलता सदा एकरूप बना रहता है वह केवल भगवद तत्व है,परमात्म तत्व है। हमारे प्रभु सीताराम जी निरंतर रहने वाले हैं और यह संसार  छूटनेवाला है। इसलिए हमें चाहिए कि हम दृढ़ता से यह मान लें कि प्रभु हमारे हैं और हम प्रभु के हैं।जैसे छोटा सा बालक कहता है कि मां मेरी है।कोई उससे पूछे कि बता मां तेरी क्यों है।तो इसका उत्तर उसके पास नहीं है।उसके मन में कोई शंका,कोई संदेह नहीं हैं। मां उसकी है, बस।फिर चाहे आप कुछ भी कहें, उसके लिए आपकी कोई बात महत्व ...

' सत्य ' ही परम् धर्म है






मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ हैं , धर्म , अर्थ  ,काम और मोक्ष l इन चारों पुरुषार्थों में 'धर्म ' को प्रधान माना गया है l धर्म मोक्ष का प्रधान साधन है l उत्थान तथा कल्याण का साधन धर्म ही है l अर्थ एवं काम की भी वास्तविक सिद्धि धर्म से ही होती है  किन्तु यह '  धर्म '  जिसपर टिका है , वह है '  सत्य '  l सत्य ही जीव की परम् गति है '  सत्यं हि परमा गतिः '
  ( महाभा.शांति :  162/4) l  त्रिविध तप में  ' वाक् -  तप ' सत्य -भाषण को ही माना गया है l धर्म के चार चरणों में सत्य का स्थान सर्वोच्च माना गया है l भारतीय जीवन का प्राण सत्य था l स्वप्न के सत्य को भी जीवन में उतारनेवाले सत्यव्रत हरिश्चंद्र की कथा विश्व में सत्य के लिए राज्य , ऐश्वर्य ,प्रेममयी पत्नी , स्नेहमय पुत्र के त्याग की कथा के रूप में प्रख्यात है l सत्यवादियों की परम्परा में भगवान् श्री राम की सत्यनिष्ठा अप्रतिम थी l उनकी धारणा थी कि लोभ ,मोह , अज्ञान किसी भी प्रतिबन्ध से सत्य को नहीं छोड़ना चाहिए l शास्त्रों का कथन है कि देवता तथा पितर भी असत्यवादी का हव्य नहीं ग्रहण करते l सत्य - रक्षा के लिए ही रामजी ने अपने अंतिम क्षणों में काल को वचन देने के कारण अपने प्राण से भी प्रिय भाई लक्ष्मण को भी त्याग दिया था l इससे हमे यह पता चलता है कि श्री रामजी का जीवन सत्य के लिए ही समर्पित था l मात्र सत्य पालन -  धर्मरक्षा  के लिए ही उन्होंने जटा-चीर को धारण किया था तथा वनवास के असह्य दुखों को भोगा था l 




प्राचीन काल में जब आचार्य गुरुकुल में विद्यार्थियों को शिक्षा दिया करते थे तब वे उन्हें सर्व प्रथम '  सत्यं वद ' सत्य पालन उसके उपरांत  'धर्मं चर ' धर्म पर चलने का उपदेश देते थे l इससे यहि सिद्ध होता है कि धर्म के मूल में भी यदि कुछ है , तो वह '  सत्य '  है l गीता में कहा गया है '  ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्य '  अर्थात ब्रह्म ही सत्य है बाकि सब मिथ्या है l इसलिए जहाँ सत्य होगा वहीं ब्रह्म होगा l सत्य ब्रह्म का निवास स्थान भी है l शंकर जी भी माता पार्वती से यहि कहते हैं कि हरी का भजन ही सत्य है शेष जगत मात्र स्वप्न है '  उमा कहउँ मैं अनुभव अपना l सत हरि भजन जगत सब सपना l  (  मानस ) l भगवान् शिव कि वाणी से यह सिद्ध हो गया कि सत्य भाषण करना भगवान् का भजन करना ही है और वही सत्य है l सत्य ही सनातन धर्म है '  सत्यं धर्मः सनातनः '  , सत्य को ही सदा सिर झुकाना चाहिए '  सत्यमेव नमस्येत '  l सत्य ही धर्म , तप और योग है , सत्य ही सनातन ब्रह्म है , सत्य को ही परम् यज्ञ कहा गया है तथा सब कुछ सत्य पर ही टिका है '  सत्यं धर्मस्तपो योगः सत्यं ब्रह्म सनातनम l सत्यं यज्ञ:  पर:  प्रोक्तः सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितम l '  ( महाभा.शांति :  162/4-5) 


वाल्मीकि रामायण का कथन है कि जगत में सत्य ही ईस्वर है , सदा सत्य के ही आधार पर धर्म की स्थिति रहती है l सत्य ही सबकी जड़ है l सत्य से बढ़ कर दूसरी कोई उत्तम गति नहीं है l दान , यज्ञ , होम , तपस्या और वेद -  इन सब का आश्रय सत्य है , इसलिए सब को सत्य परायण होना चाहिये l '  सत्यमेवेश्वरो लोके सत्ये धर्मः सदाश्रितः l सत्यमूलानि सर्वाणि सत्यानास्ति परं पदम् l l  दत्तमिष्टं हुतं चैव तप्तानि च तपांसि च l वेदा: सत्यप्रतिष्ठानास्तस्मात सत्यपरो भवेत् l l ( वा .रा.अयोध्या :  101/  13-14 )
सत्य ही जीव की शाश्वत सम्पदा है l  सत्य के समान दूसरा कोई परम् धर्म नहीं है
' सत्यानास्ति परो धर्मः '  l  




मिथ्या भाषण को रोग , विष तथा भयंकर शत्रु माना गया है l असत्यवादी से कोई मित्रता नहीं करता l उसका पुण्य , यश , श्रेय सब नष्ट हो जाता है l जो पुण्यात्मा होते हैं वे असत्य को अविश्वास का मूल कारण , कुवासनाओं का निवास स्थान , विपत्ति  का कारण , अपराध तथा वंचना का आधार मान कर उसे त्याग देते हैं l जिस प्रकार अग्नि वन को जला देता है , उसी प्रकार असत्य भाषण से यश नष्ट हो जाता है l 



इस प्रकार हमारे भारतीय सद्ग्रंथों तथा शास्त्रों में  ' सत्य ' को ही परम् धर्म सिद्ध किया गया है l 

-------------------जय श्री सीताराम ---------------------
Plzz comment

Comments

Popular posts from this blog

कर्म ही जीवन है

कर्म योग

स्वाभिमान और अभिमान में क्या अंतर है?

अहंकार का त्याग करें

सत्य बोलने पर सेवक बना राजा

हमारे तो एक प्रभु हैं...