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Showing posts from October, 2020

हमारे तो एक प्रभु हैं...

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  बड़े भाग मानुष तन पावा। मनुष्य शरीर बड़े भाग्य से मिलता है,भगवान की कृपा से मिलता है।इसलिए यह शरीर भगवान के लिए है।उनको प्राप्त करने के लिए है। वास्तव में एक मेरे प्रभु श्री सीताराम जी के अलावा और किसी की सत्ता है ही नहीं।आप विचार करके देखें,ये शरीर,ये संसार मिटनेवाला है,निरंतर मिट रहा है। जब हम मां के पेट से पैदा हुए थे,उस समय इस शरीर की क्या अवस्था थी और आज जब देखते हैं तो इसकी कैसी अवस्था है। ये संसार,ये शरीर पूर्व में जैसा था आज वैसा नहीं है और आज जैसा है,भविष्य में ऐसा नहीं रहेगा।यह निरंतर बदलने वाला है,बदल रहा है।लेकिन जो कभी नहीं बदलता सदा एकरूप बना रहता है वह केवल भगवद तत्व है,परमात्म तत्व है। हमारे प्रभु सीताराम जी निरंतर रहने वाले हैं और यह संसार  छूटनेवाला है। इसलिए हमें चाहिए कि हम दृढ़ता से यह मान लें कि प्रभु हमारे हैं और हम प्रभु के हैं।जैसे छोटा सा बालक कहता है कि मां मेरी है।कोई उससे पूछे कि बता मां तेरी क्यों है।तो इसका उत्तर उसके पास नहीं है।उसके मन में कोई शंका,कोई संदेह नहीं हैं। मां उसकी है, बस।फिर चाहे आप कुछ भी कहें, उसके लिए आपकी कोई बात महत्व ...

मनुष्य की परिभाषा

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धर्म के नाम पर अपनी विस्तारवादी सोच को किसी पर आरोपित करना धर्म नहीं है अपितु संकुचित मानसिकता है, अज्ञान है।धर्म का अर्थ है,करुणा का विस्तार ,दया का विस्तार न कि हिंसा और बर्बरता का।जहाँ देखो वहाँ हिंसा है,क्रूरता है।ऐसा लगता है कि हम मनुष्य के बीच में नहीं वरन खूंखार जानवरों के बीच में रह रहे हैं।एक दया का भाव ही था जो हमें जानवरों से भिन्नता प्रदान करता था किंतु अब वह भी नहीं रहा,इसलिए मुझे लगता है कि अब हमें स्वयं को मनुष्य कहना,छोड़ देना चाहिए।लेकिन ऐसा तो हो नहीं सकता,भले ही हममें मनुष्यता न हो फिर भी हम मनुष्य तो हैं।हाँ ,माना कि हम सभ्य नहीं हैं,धोखेबाज़ हैं, क्रूर भी हैं लेकिन हम मनुष्य तो हैं।क्योंकि हमें मनुष्य का शरीर जो प्राप्त हुआ है।और यही हमारे मनुष्य होने का सबसे बड़ा प्रमाण है।मुझे लगता है कि अब हमें मनुष्य की परिभाषा बदलनी चाहिए।क्योंकि अब मनुष्य होने के लिए मनुष्यता नहीं,बस शरीर ही पर्याप्त है।आज जिसके पास भी मल-मूत्र का यह भांड है,वह मनुष्य है।अच्छा ही है,अब मनुष्यता की स्थापना करने वाले साहित्यकारों को लंबे-चौड़े आलेख नहीं लिखने पड़ेंगे, न ही उन्हें गुण और अवगुण में भे...

मीडिया का राष्ट्र निर्माण

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  विगत कुछ दिनों में भारत की मीडिया की भारतीयता लगभग सभी ने भाप ली है। एक ओर तो भारतीय मीडिया भारत की एकता और अखंडता की दुहाई देती है,और दूसरी ओर भारत की उसी एकता और अखंडता को खंडित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।राष्ट्र निर्माण में जुटी मीडिया किस तरह राष्ट्र के ध्वंस में भूमिका निभा रही है,ये सभी ने देखा।पिछले कुछ दिनों में हाथरस का पूरा कांड मीडिया ने दलित बनाम ठाकुर दिखाकर ,एक सुनियोजित ढंग से भारत में जातिगत संघर्ष उत्पन्न करने का प्रकल्प चलाया।और बहुत हदतक मीडिया इसमें सफल भी रही।लेकिन अंततः उसकी इच्छा धरी की धरी रह गयी। एक बात मेरे समझ से परे है कि राष्ट्र के निर्माण की बात करने वाले तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग ,मीडिया वर्ग आदि।राष्ट्र में जातिगत संघर्ष उत्पन्न करके राष्ट्र का निर्माण कैसे करेंगे? एक ओर तो ये लोग भारत को एकता के सूत्र में बांधने की बात करते हैं और दूसरी ओर विदेशीयों द्वारा भारत को खंडित करने के लिए चलाए गए प्रकल्प में भागीदार बनते हैं।भारत में चाहे राजनीतिक दल हों, चाहे समाज सुधार के रूप में काम कर रही अनेक संस्थाएं हों ,चाहे मीडिया हो या फिर तथ...