हमारे तो एक प्रभु हैं...

Image
  बड़े भाग मानुष तन पावा। मनुष्य शरीर बड़े भाग्य से मिलता है,भगवान की कृपा से मिलता है।इसलिए यह शरीर भगवान के लिए है।उनको प्राप्त करने के लिए है। वास्तव में एक मेरे प्रभु श्री सीताराम जी के अलावा और किसी की सत्ता है ही नहीं।आप विचार करके देखें,ये शरीर,ये संसार मिटनेवाला है,निरंतर मिट रहा है। जब हम मां के पेट से पैदा हुए थे,उस समय इस शरीर की क्या अवस्था थी और आज जब देखते हैं तो इसकी कैसी अवस्था है। ये संसार,ये शरीर पूर्व में जैसा था आज वैसा नहीं है और आज जैसा है,भविष्य में ऐसा नहीं रहेगा।यह निरंतर बदलने वाला है,बदल रहा है।लेकिन जो कभी नहीं बदलता सदा एकरूप बना रहता है वह केवल भगवद तत्व है,परमात्म तत्व है। हमारे प्रभु सीताराम जी निरंतर रहने वाले हैं और यह संसार  छूटनेवाला है। इसलिए हमें चाहिए कि हम दृढ़ता से यह मान लें कि प्रभु हमारे हैं और हम प्रभु के हैं।जैसे छोटा सा बालक कहता है कि मां मेरी है।कोई उससे पूछे कि बता मां तेरी क्यों है।तो इसका उत्तर उसके पास नहीं है।उसके मन में कोई शंका,कोई संदेह नहीं हैं। मां उसकी है, बस।फिर चाहे आप कुछ भी कहें, उसके लिए आपकी कोई बात महत्व ...

मीडिया का राष्ट्र निर्माण

 




विगत कुछ दिनों में भारत की मीडिया की भारतीयता लगभग सभी ने भाप ली है। एक ओर तो भारतीय मीडिया भारत की एकता और अखंडता की दुहाई देती है,और दूसरी ओर भारत की उसी एकता और अखंडता को खंडित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।राष्ट्र निर्माण में जुटी मीडिया किस तरह राष्ट्र के ध्वंस में भूमिका निभा रही है,ये सभी ने देखा।पिछले कुछ दिनों में हाथरस का पूरा कांड मीडिया ने दलित बनाम ठाकुर दिखाकर ,एक सुनियोजित ढंग से भारत में जातिगत संघर्ष उत्पन्न करने का प्रकल्प चलाया।और बहुत हदतक मीडिया इसमें सफल भी रही।लेकिन अंततः उसकी इच्छा धरी की धरी रह गयी।

एक बात मेरे समझ से परे है कि राष्ट्र के निर्माण की बात करने वाले तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग ,मीडिया वर्ग आदि।राष्ट्र में जातिगत संघर्ष उत्पन्न करके राष्ट्र का निर्माण कैसे करेंगे? एक ओर तो ये लोग भारत को एकता के सूत्र में बांधने की बात करते हैं और दूसरी ओर विदेशीयों द्वारा भारत को खंडित करने के लिए चलाए गए प्रकल्प में भागीदार बनते हैं।भारत में चाहे राजनीतिक दल हों, चाहे समाज सुधार के रूप में काम कर रही अनेक संस्थाएं हों ,चाहे मीडिया हो या फिर तथाकथित बुद्धिजीवी, सभी ने भारत को केवल और केवल बाँटा है।सभी ने भारत में जातिगत विद्रोह उत्पन्न करके,अपनी -अपनी रोटियां सेकी हैं, और आज भी वे वही कर रहे हैं।

भारत की जनता को जातिवाद का विष पिलाने वाले और कोई नहीं,बल्कि यही लोग हैं।साहित्यकार साहित्य के नाम पर द्वेष पूर्ण रचनाएँ लिख रहा है,तो मीडिया राष्ट्र निर्माण का चोला पहन कर राष्ट्र को खंडित करने का प्रकल्प चला रही है।वैसे स्वयं के स्वार्थ सिद्धि के लिए लिखने वाले बाज़ारू लेखकों को साहित्यकार कहना,साहित्य का अपमान है।क्योंकि श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि कीरति भनिति भूति भलि सोई।सुरसरि सम सब कहँ हित हाई।। (मानस) अर्थात साहित्य वही है ,जो गंगा जी की तरह सब का कल्याण करे।और ऐसे कल्याणकारी साहित्य का सृजन करने वाले ही साहित्यकार की कोटि में आने के अधिकारी हैं।

बहरहाल ,मीडिया का राष्ट्र निर्माण यूँहीं निरंतर चलता रहेगा क्योंकि ' परम् स्वतन्त्र न सिर पर कोई' (मानस)



----------------जय श्री सीताराम----------------------




Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

कर्म ही जीवन है

कर्म योग

स्वाभिमान और अभिमान में क्या अंतर है?

अहंकार का त्याग करें

सत्य बोलने पर सेवक बना राजा

हमारे तो एक प्रभु हैं...