आप को पाना क्या है ? आप की चाह का विषय क्या है ? क्या आप को यह समझ में आता है l जीव की चाह का , जीव माने हम और आप जो प्राणी हैं , उनकी चाह का विषय है , ऐसा जीवन जहाँ मौत की छाया न पहुँच सके , मृत्यु के चपेट से विमुक्त होकर सदा के लिए नित्य होकर शेष रह सकूँ , मृतुन्जय होकर , चाह का असली विषय यही है l मृत्यु से बचना चाहता है , मृतुन्जय होकर जीना चाहता है l यह सार्वभौमिक सिद्धांत है l इसी को कहा गया 'असतो मा सद्ग्मय ' l
ना समझी , अज्ञता , मूर्खता , जड़ता के चपेट से मुक्त होना चाहताा है , चिद्रूप (शुद्ध चैतन्य रूप , निर्मल स्वभाववाला ) अखंड ज्ञान -स्वरुप होकर जीव शेष (बचा हुआ , जीना ) रहना चाहता है , ' तमसो मा ज्योतिर्गमय ' l जो कुछ दैहिक , दैविक ,भौतिक ताप , वेदना , कष्ट है , उससे मुक्त होना चाहता है l आनंद होकर शेष रहना चाहता है , ' मृत्योर्मा अमृतं गमय ' l
अर्थात जीव का जो असली स्वरुप है , उसी को जीव पाना चाहता है l मृत्यु , जड़ता , दुःख से विनिर्मुक्त (मुक्त होकर ) सतचित आनंद होकर जीव शेष रहना चाहता है , सच्चिदानंद ( सत , चित आनंद स्वरुप प्रभु ) तत्व से ही आया है और सच्चिदानंद तत्व को ही पाना चाहता है l वहीं जाना चाहता है , किन्तु भ्रम के कारण उस सच्चिदानंद तत्व का वरण (चुनाव , चुनना ) न करके , जगत को वरण कर रहा है l जैसे कोई व्यक्ति छाया का वरण करना चाहे , किन्तु छाया का वरण करके बिम्भ (सूर्य , प्रकश ) की प्राप्ति नहीं होती , ऐसे ही जो सच-मुच में सत है , चित है , आनंद है जो हमारा अपना आपा ( अपना स्वरुप ) है , उसी को हम प्राप्त करना चाहते हैं , वही हमारा मौलिक स्वरुप है , वहीं से हम आएं हैं और वहीं हम जाना चाहतें हैं l
गाढ़ी नींद इस का सब से अच्छा उदाहरण है , गाढ़ी नींद में मौत का भय नहीं होता , मनोविकार की प्राप्ति नहीं होती , द्वन्दों की प्राप्ति नहीं होती , दुःख की प्राप्ति नहीं होती लेकिन इनका बीज बना रहता है , वो बीज ही मोह है , अज्ञान है , उसको सतसंग के द्वारा दूर कर लेने पर जीव अपने असली स्वरुप को प्राप्त हो जाता है l
दूसरी बात यह है की , प्रत्येक अंश अपने अंशी की ओर आकृष्ट ( खींचता है , आकर्षित ) होता है , जो भी पार्थिव ( पृथ्वी से उतपन्न , पृथ्वी से सम्बन्ध रखने वाला ) वस्तु है , पुष्प , फल इत्यादि उसके आकर्षण का केंद्र पृथ्वी ही है , फूल टूटे , फल टूटे , पत्ता टूटे सब पृथ्वी पर ही गिरेंगे l यदि फल को फिर से उठा कर ऊपर फेंक दिया जाये तो बल और वेग के निरस्त होने पर वह फिर पृथ्वी की ओर आकृष्ट होगा , क्यों की वह पार्थिव है l आज कल बड़ी -बड़ी इमारतें बनाई जाती हैं , उन इमारतों के ऊपर यांत्रिक विधा का आवलंबन (सहारा ) लेकर जल पहुँचाया जाता है , जब हम नल की टोटी खोलते हैं , तब जल की धरा निचे की ओर आती है , क्यों ? क्यों की वह अंश है और अंशी है सागर l आग प्रज्वलित कीजिये अग्नि की रश्मियां ,चिंगारियाँ ऊपर की ओर उठती हैं , क्यों की अग्नि अंश है और अंशी है सूर्य l इसी तरह जीव के आकर्षण का विषय भी उसका अंशी सरीखा परमात्मा है , जो की उसका मौलिक स्वरुप है l प्रत्येक अंश का असली स्वरुप अंशी ही होता है l जीव का जो मौलिक स्वरुप है , वास्तविक स्वरुप है , उसी की तरफ उसका आकर्षण है l इसलिए कहाँ से आये ? उत्तर - परमात्मा से आये l कहाँ जाना है , किसको चाहते हैं ? - उत्तर- उसी परमात्मा को चाहते हैं l
Very nice
ReplyDeleteBahut hi Sundar
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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